________________
Saraw
was een
Warnaranasan anpaniya wanawataawanpawe
SUBenwwwenORRIEDOPYRPRADwenwepwARRORS
....... पुण्यपापजगमूलपचीसी. १९७९ नाही है है तोहि, एतो हू विचार नाही ऐसे ज्ञान ख्वै रहे । नमें । परंगो कौन ? संकट सहगो कौन, अजहूं सम्हारो क्यों न कोन , है नींद स्वै रहे ।॥ १० ॥ र सरवज्ञ देवजूकी सेव करें सब इन्द्र, तिनहूके कवला अहार
नाही लीजिये । मुनि होंय लन्धिधारी ते चलें अकाश माहि, कंवलीको भूमचारी ऐसे क्यों कहीजिये ॥ जाके देख वैरभाव है
जाहिं सब जीवनके, ताके आगे साधु जरे कैसें के पतीजिये ! है. ऐसो मिथ्यावन्तने बनाय कहूं तन्त लिखो, संत है सचेत यों है।
विवेक हिये कीजिये ।। ११॥ . है पंचमें जो गुण थान भाव जो विशुद्ध होय, चढे जिय सातवें
प्रसिद्ध यहवात है। छद्दोगुण थानकजा तियको न होय कहूं, नगन न रहि सके लजावंत गात है.। मनपर्जय ज्ञान हू, मने कियो । सरवज्ञ, ध्यानहको योग नाही चढि कैसें जात है। तासों कहै तीर्थकर पद पाय मुक्ति भई, ऐसे मिथ्यावादिनसों कैसके वसात है ।। १२॥ ___ सोबत अनादि काल वीत्यो तोहि चिदानंद, अजहूं सम्हार
किन मोह नींद खोय । सोयो तू निगोद मांहि ज्ञान नैन मूंद है आप, सोयो पंच थावरमें शक्तिको समोयके ॥ विकलने देह
पाय तहां तूही सोय रह्यो,सोयो नप्रमान धर वाही रूप होयके॥ पंच इन्द्री विपै माहिं मग्न होय सोय रह्यो, खोयो ते अनंतो काल याही भाति सोय के ॥ १३ ॥ . . .
opremo prebralireret are notebook toda prata om d
en stora ste da sterou
(१)संकोच. .
. . . . . ., PAPERPRIMADRAMPERORPORREntwanoos