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ब्रह्मविलासमें पानीके परीसे माहि, प्रान किन नाश जाहिं रहै सुख मानके ।
ऐसी प्यास मुनि सहै तब जाय सुख लहै, 'भैया इहिभाँति कहै , है बंदिये पिछानके ॥ ७॥
. ५. डॅस मस्कादिपरीसह. सिंह सांप ससा स्याल सूअर ओ स्वान भालु, वाघ वीछी वा इनर सु वाजने सताये हैं। चीता चील्ह चरख चिरैया चूहा चेंटी है चैटा,गज गोह गाय जो गिलहरी बताये हैं। मृगमोर मांकरी सु टू मच्छर ओमांखी मिल, भौंरा भौंरी देख कै खजूरा खरे धाये हैं।
ऐसे डंस मसकादि जीव हैं अनेक दुष्ट, तिनकी परीसे जीते साधुजू कहाये हैं ॥ ८॥
६. शय्यापरीसह. शुद्ध भूमि देख रहै दिनसेती योग गहै, आसन सु एक लहै धरै यह टेक है। कैसो किन कष्ट परै ध्यानसेती नाहिं टरै, देहको ममत्व हरै हिरदै विवेक है। तीनोंयोग थिरसेतीसहत परीसे जेती, कहै को बखान तेती होंय जे अनेक हैं। ऐसे निशि शैन करै चल सु अंग धरै, भव्य ताकें पाँय परै धन्य मुनि एक हैं ॥९॥
' ७, वधबंधपरीसह. . कोळ बांधो कोऊ मारो कोऊ किन गहडारो, सबनके संकट है सुबोधतें सहतु है। कोऊ शिर आग धरो कोऊ पील प्रान हरो, कोऊ काट एक करो द्वेष न गहतु है। कोऊ जल माहि । कोऊ लेके अंग तोरो, को कह चोर मोरो दुख दे दहतु है। ऐसे बधबंधके परीसहको जीतै साधु, 'भैया' ताहि वार वार वं
दना कहतु है ॥१०॥ ManpowepwwwPEPARWARROWANWARRANG
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