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ब्रह्मविलासमें
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चौपाई. (१६ मात्रा) मूरख कहै ग्रन्थ पहिचानों । सांच झूठको भेद न जानों॥ जो कुछ लिख्यो सोई मै मानों। मेरे हृदय यह ठहरानो ॥३॥ धूप मांहि जो कहै अन्धेरा । सूरज अथवत होय सवेरा ॥ हिंसा करत पुण्य बहु होई । ऐसौ लिख्यो सत्य मुहि सोई ॥४॥ मा कहिकें जो बांझ बखाने । कर्म न होय प्रकृति परमाने ॥ जो मोको उपदेशहि ऐसो । तो मैं कहूं सत्य सवतेसो॥५॥ सांच त्याग जो झूठ अलापै । झूठे वचन सत्य कहि थापै ॥ हिरदै सून्य सुन्यों मैं सवही । नैक विवेक धरों नहिं कवही॥६॥ ह ऐसे शून्य हिये जे प्रानी । ते कलियुगकी बनी निशानी॥ तिनको देख दया मन धरिये । वाद विवाद कछुनहिं करिये।॥७
दोहा. ज्ञानवंत सुन वीनती, परसों नाही काम ॥ अनुभव आतम रामको, 'भैया' लख निजधाम ॥८॥
इति मूढाष्टकं । अथ सम्यक्त्वपचीसिका लिख्यते। सम्यक आदि अनंत गुण, सहित सु आतम राम ॥ प्रगट भये जिह कर्म तज, ताहि करों परणाम ॥१॥ उपशम वेदक क्षायकी, सम्यक तीन प्रकार ॥ ताहीके नव भेद हैं, कहाँ ग्रंथ अनुसार ॥२॥
. चौपाई. ( १५ मात्रा) उपसम समकित कहिये सोय । सात प्रकृति उपसम जहँ होय । ६ दर्शन मोह तीन परकार । अनतानुबंधीकी चार ॥३॥
१ डुवते. २ सम्यक् वा सम्यग्दर्शन. MPAPopCOO/2wme/OOOOOOOOOOOOD
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