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ब्रह्मविलासमें दूसरेसे सेन, आठवें दूसरेसे वन, नवमें दूसरेसे होन, दशवें दूसरेसे सन, और ग्यारहवें दूसरेसे दान, बनकर सब प्रश्नोंके उत्तर निकलते हैं।
___ अन्तलापिका-छप्पय। कहो धर्म कव करै? सदा चितमें क्या धरिय।। प्रभु प्रति कीजे कहा ? दानको कहा उचरिये ? ॥ आस्रव सों किम जीत! पंच पदकों कहा गहिये ?॥ गुरु शिक्षा किम रहै ! इन्द्र जिनको कहा कहिये ।। सब प्रश्न वेद उत्तर कहत, निज स्वरूप मनमें धरो। 'भैया' सुविचक्षन भविक जन, सदा दया पूजा करो॥५॥
भावार्थ-सदा दयापूजा करो-इस पदके चार शब्दों में तो पहिले हूँ चार प्रश्नोंका उत्तर मिलता है. जैसे धर्म कव करै! सदा, चित्तमें सदा हैं क्या रक्खें ? दया आदि, और अन्तके चार प्रश्नोंका उत्तर इन्हीं चार शब्दोंको उलटें पढनेसे ( रोक, जापु, याद, दास ) से निकलता है."
___ अन्तलापिका छप्पय.मन्दिर वनवावो? मूर्ति, लाव-सैना सिंगारहु । अम्बु आन? वासर प्रमाण, पहुची नग धारहु ? ॥ मिश्री मंगवा ? कुमुद, लाव ? सरसी तन पिक्खहु । तौल लेहु ? दत लच्छि, देहु ? मुनि मुद्रा सिक्खहु १ ॥ 'सव अर्थ भेद भैया कहत, दिव्य दृष्टि देखहु खरी। ___ आकृत्रिम प्रतिमा निरखतसु,करि न घरीन भरीधरी॥
भावार्थ-प्रथम द्वितीय और तृतीय प्रश्न के उत्तर 'करी न'इस शब्दके है तीन अर्थ करने से निकलते है (१ कड़ी नहीं है २ बनवाई नहीं, ३ हाथी है
नहीं.) दूसरे पादके चौथे पांचवें छटवे प्रश्नके उत्तर 'घरी न इस शब्दके SampranamwowwecomPANDRAPARPeopars
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