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ब्रह्माविलासमें
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नर देही पाई है। इहां आय विषै रस लाग्यो अति नीको तोहि, है ताके संग केलि करै यहै निधि पाई है. ॥ आगें अब कहा गति है है है चिदानंद राय, चलवेकी थिति सांझ भोर माहि आई है। साथ कौन संबल न सत्तू कछु लेत मूढ, आगे कहा तोहि सुख सेज ले विछाई है ॥ १९॥
द्वै द्वै लोचन सब धरै, मणि नहिं मोल कराहि ॥ ह सम्यकदृष्टी जोहरी, विरले इहि जगमाहिं ॥ २० ॥
कवित्त. वर्ष सौ पचास माहिं एते सव मरजाहि, जे ते तेरी दृष्टिविपक देखतु है बावरे। इनमेंको कोऊ नाहिं बचवेको काल पाँहि, राजा रंक क्षत्री और शाह उमराव रे । जमहीकी जमा मांहि घरी पल चले जाहिं, घटै तेरी आव कछु नाहिं कोउपावरे । आजकाल्हि ए तोहूको समेट काल गाल माहि, चावि जैहै चेत देख पीछे नाहिं है दावरे ॥२१॥
जो वानी सर्वज्ञकी, तामें फेर न सार ॥ कल्पित जो काहू कही, तामें दोप अपार ॥ २२॥ जाके होय क्रोध ताके वोध को न लेश कहूं, जाके उर मान ताके गुरु को न ज्ञान है । जाके मुख माया वसै ताके पाप केई. लशै, लोभके धरैया ताको आरतको ध्यान है ॥ चारों ये कपाय ।
तौ दुर्गति ले जाय 'भैया, इहां नवसाय कछु जोरवल पान ह है। आतम अधार एक सम्यक प्रकार लशै, याहीतें उधार निज है थान दरम्यान है ॥ २३॥
आप निकट निज हुगनितें, विकट चर्म हग दोय ॥ र जाके हग जैसें खुलै, तैसो देखै सोय ॥२४॥ PppoPPROOPPOSITERPROmnasana
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