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ब्रह्मविलास में
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अकृत्रिम जिनमंदिर जहां । नितप्रति वंदन कीजें तहां ॥ १ ॥ प्रथम पताल लोकविस्तार । दश जातिनके देव कुमार ॥ तिनके भवन भवन प्रति जोय । एक एक जिनमंदिर होय ॥ २ ॥ असुर कुमारनके परमान । चौसठ लाख चैत्य भगवान || नाग कुमारनके इम भाख । जिनमंदिर चौरासी लाख ॥ ३ ॥ हेम कुमारनके परतक्ष । जिनमंदिर हैं बहतर लक्ष ॥ विदुत कुमारनके भवनाल । लक्ष छिहत्तर नमूं त्रिकाल ॥ ४ ॥ सुपर्ण कुमारनके सब जान । लक्ष बहत्तर चैत्य प्रमान ॥ अगनि कुमारनके प्रासाद । लक्ष छिहत्तर बने अनाद ॥ ५ ॥ बात कुमार भवन जिनगेह । लक्ष छिहत्तर वंदहुं तेह || उदधि कुमार अनोपमधाम । लक्ष छिहत्तर करूं प्रणाम ॥ ६ ॥ दीप कुमार देवके नांव । लक्ष छिहत्तर नमुं तिहँ ठांव ॥ लक्ष छयानवें दिक्क कुमार । जिनमंदिर सो है जैकार ॥ ७ ॥ ये दश भवन कोटि जहँ सात । लक्ष बहत्तर कहे विख्यात तिन जिनमंदिरको त्रैकाल | वंदन करूं भवन पाताल ॥ ८ ॥ मध्य लोक जिन चैत्य प्रमान । तिनप्रति बंदों मनधर ध्यान पंचमेरु अस्सी जिन भौन । तिनकी महिमा बरने कौन ॥ ९ ॥ वीस बहुर गजदंत निहार । तहां नमूं जिन चैत्य चितार ॥ तीस कुलाचल पर्वत शीस । जिन मंदिर बंदों निशदीस ॥१०॥ विजयारध पर्वतपर कहे। जिन मंदिर सौशत्तर लहे ॥ शुरद्रुमन दश चैत्य प्रमान । वंदन करों जोर जुगपान ॥ ११ ॥ श्रीवक्षार गिरहिं उर धरों । चैत्य असी नित वंदन करों ॥ मनुषोत्तर परबत चहुं ओर । नमहूं चार चैत्य करजोर ॥ १२॥
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ॐ aai aan
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