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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
कर्मबंधके दशमेद.
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गुण लच्छन वरनन सुनें, जागहिं आतम राम ॥ २ ॥ वैन्धसमुच्चय भेद ये, उत्कैर्पण जु वढाय ॥ शंकरमन औरहि लसै, अपकर्षण घट जाय ॥ ३ ॥ लावे निकट उदीरणा, संत्ता उदय करंत ॥ 'उपसम और निधत्तं लखि, कर्म निकांचिंत अंत ॥ ४ ॥
चौपाई.
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प्रथमहि दूजो
मिथ्या अत्रत योग कपाय | बंध होय चहुं परतें आय ॥ थिति अनुभाग प्रकृति परदेश | ए बंधन विधि भेद विशेश ॥५॥ बंध प्रकृति जो होय । समुचैबंध कहावै सोय ॥ उत्कर्पण बंध एह । थितहिं बढाय करै बहु जेह ॥ ६ तीजो संकरमण जु कहाय । औरकी और प्रकृति हो जाय ॥ गतिविन और करम कही । बंघ उदय नाना विधि लही ॥७॥ चौथो अपकर्षण इम थाय । बंध घंटे अथवा गल जाय ॥ पंचम करन उदीरण हेर । ल्यावै निकट उदयमें घेर ॥ ८ ॥ सत्ता अपनी लिये वसंत । पष्टम भेद यहै विरतंत ॥ सप्तम भेद उदय जे देय । थिति पूरी कर बंध खिरेय ॥९॥ अष्टम उपसम नाम कहाय । जहां उदीरन बल न बसाय ॥ नवमों भेद निधत्त जु सोय । उदीरन संक्रमणन होय ॥१०॥ दशमों बंध निकांचित जहां । थिति नहीं बढे घटै नहिं तहां ॥ उदीरण. संक्रमणन और । जिम बंध्यो रस दै तिन ठौर ॥ ११ ए दश भेद जिनागम लहे । गोमठसार ग्रंथमें कहे ॥ समझे धारै जे उर माहिं । तिनके चित्त विकलता नाहिं १२ गुण थानक पैं जहां जो होय । आगम देख विलोकहु सोय ॥
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सब संशय जियके मिट जाय । निर्मल होय चिदातमराय १३
සූර්යකකම මේ
6 de ab go do dea
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