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द्रव्यसंग्रह. वल प्रकाशवान वसुभेद लेखिये ॥ मति श्रुति ज्ञान दोऊ हैं र परोक्षवान औधि, मनपर्जय प्रत्यक्ष एक देश पेखिये । केवल प्र
त्यक्ष भास लोकालोकको विकास, यह ज्ञान शास्वतो अनंतकाहैल देखिये ॥ ५॥ में अट्टचर्दुणाणदसण, सामण्णं जीवलक्खणं भणियं । ववहारा सुद्धणया, सुई पुण दंसणं णाणं ॥ ६॥
मात्रिक कवित्त. है अष्ट प्रकार ज्ञान चतु दरसन, नय व्यवहार जीवके लच्छन ।
निह शुद्ध ज्ञान ओ दरसन, सिद्ध समान सुछंद विचक्षन ।। केवल ज्ञान दरस पुनि केवल, राजे शुद्ध तजै प्रतिपच्छन ।
यहनिहचै व्योहार कथनकी, कथा अनंत कही शिवगच्छन ॥६॥ है वण्ण रस पंच गंधा, दो फासा अष्ट णिच्चया जीवे। णो संति अमुत्ति तदो, ववहारा मुत्ति बंधादो ॥७॥
कवित्त. वर्ण पंच स्वेत पीत हरित अरुण श्याम, तिनहुके भेद नाना ६ भांतिके विदीत है । रस तीखो खारो मधुरो कडुओ कपायलो, है. इनहके मिले भेद गणती अतीत है। तातो सीरो चीकनो रूखो ।
नरम कठोर, हरुवो भारी सुगंध दुर्गंधमग्री रीत है । मूरति सुपुए गुलकी जीव है अमूरतीक नैव्यौहार मूरतीकवंधते कहीत है।॥७॥ है वंध्यो है अनादिहीको कर्मके प्रबंध सेती, तातें मूरतीक कह्यो। . परके मिलापसों । बंधहीमें सदा रहै समैप्रतिसमै गहै; पुग्गलसों 0 एकमेक ह रह्यो है आपसों ॥ जैसे रूपो सोनो मिले एक नाव है
(१) चहुं ऐसाभी पाठ है।। HanepanPERMERRIERSPADARPORPORNWROARD
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