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कहो सुबुद्धि किम जीतिये, ये दुश्मन सव घेर ।।
ऐसी कला वताव जिमि, कबहुं न आवे फेर ॥७॥ कह सुबुद्धि इक सीख सुन, जो तू माने कंत ।। __ कै तो ध्याय स्वरूप निज, के भज श्रीभगवंत ॥८॥
सुनिके सीख सुबुद्धिकी, चेतन पकरी मौन ।। ___उठी कुबुद्धि रिसायके, इह कुलक्षयनी कौन ? ॥९॥ मै बेटी हूं मोह की, व्याही चेतनराय ।।
कहौ नारि यह कौन है, तव चेतन हँस यों कहै, अव तोसों नहिं नेह ।। . ___ मन लाग्यो या नारिसों, अति सुबुद्धि गुण गेह ॥११॥ है तबहिं कुबुद्धि रिसायके, गई पिताके पास ॥ आज पीय हमें परिहरी, तात भई उदास ॥ १२॥
चौपाई ( मात्रा १५) तबहिं मोह नृप बोलै वैन । सुन पुत्री शिक्षा इक ऐन ॥ तू मन में मत है दलगीर बांध मँगावत हों तुमतीर ॥ १३॥ तब भेजो इक काम कुमार । जो सब दूतनमें सरदार ॥ कहो बचन मेरो तुम जाय । क्योरे अंध अधरमी राय ॥ १४ ॥ व्याहीतिय छांडहि क्यों कूर। कहां गयो तेरो वल शूर ।। कैतोपांय परहु तुम आय । कैलरिवे कोरहहु सजाय ॥ १५ ॥
ऐसे बचन दूत अवधार । आयह चेतन पास विचार ।। १ नृपके बैन ऐन सब कहे । सुनके चेतन रिस गह रहे ॥ १६॥
अब याको हम परसें नाहिं । निजबल राज करें जगमाहिं ।। जाय कहो अपने नृप पास । छिनमें करूं तुम्हारो नास ॥ १७ ॥ womanPROMORROWAPROOPerpeopeans .
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