________________
FRUTIONPROPERATOPeppCBOOPcomwORRESP
ब्रह्मविलासमें
चौपाई.
raprabwaasDepresewanapanaorapawa
romoprocodooperanapoooooooooooooooooooooo/000000000000000000
कहै ज्ञान सुन जीव नरेश । तुम सम और न कोउ राजेस । है सुख समाधि पुर देश विशाल अभय नाम गढ़ अतिहि रसाल८७
तामें सदा बसहु तुम नाथ । निशि दिन राज करौ हित साथ। सुमति आदि पटरानी सात । सुबुधि क्षमा करुणा विख्यात८८॥ निर्जर दोय धारणा एक । सात आदि अरु सखी अनेक ॥ बांधव जहां धरमसे धीर | अध्यातम से सुत वरवीर ॥८॥ मित्र शांति रस बसे सुपास । निजगुण महल सदा सुख वास। ऐसे राज करहु तुम ईश। सुख अनंत विलसह जगदीश९०१ तुम पै सूर सैनको जोर । तिनको पार नहीं कह ओर ॥ तुम अपनें पुर थिर है रहौ । वचन हमारो सत सरदहौ।।९१॥ आज्ञा करहु एक जन कोय । सज सेना वह आगे होय ॥ कहै जीव तुम सुनहु सुज्ञान । तुम्हरे वचन हमें परवान ॥१२॥ हम आज्ञा यह तुमको करी । लेहु महूरत अति शुभ घरी॥ चढहु कर्म पै सज हथियार । सूर बडे सव तुम्हरी ला||९३॥ हमतुममें कछु अन्तर नाहिं । तुम हममें हम हैं तुम माहिं।। * जैसे सूर तेज दुति धरै। तेज सकल सूरजदुति करै।।९४॥ । इहि विधि हम तुम परमसनेह । कहत न लहिये गुणको छेह ॥
ज्ञान कहै प्रभु सुन इक बैन । शिक्षा मोहि दीजियो ऐन ॥१५॥ है तुम तो सब विधि हौ गुन भरे । पै अरि सों कवहूं नहिं लरे ॥ तातें तुम रहियो हुशियार । युद्ध बड़े अरिसों निरधार ॥१६॥
___वेशरी छंद. (१६. मात्रा) ज्ञान कहै विनती सुन स्वामी। तुम तौसबके अन्तर जामी।
कहा भयोनकरीमैरारी। अवदेखो मेरी तरवारी ॥ ९७॥ TropapR0EDPROPanewMDOSPROPROPORON
n orancoreporanaprasannadroopnaN