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चेतनकर्मचरित्र. B वे सब दुष्ट महा अपराधी । किहँ विधि सैन जाय सव साधी ॥ ६ मेरेमन अचरज यह ज्ञाना । पैमैं जानों तुम वलवाना ॥ ९८॥
दोहा. ज्ञान कहै चेतन सुनो, तुमसे मेरे नाथ ॥
कहा विचारो क्रूर वह, गहि डारों इक हाथ ॥ ९९ ॥ तव चेतन ऐसें कहै, जीत तुम्हारी होय ॥ मारि भगावों मोहको, रागद्वेष अरि दोय ॥ १० ॥
करिखा छंद। ज्ञान गंभीर दलवीर संग. ले चन्यो, एक ते एक सवह इसरस सूरा । कोट अरु संखिन न पार कोज गने, ज्ञानके भेद १ दल सवल पूरा॥१०१॥ सिपहसालार सरदार भयो भेद नृप, अरि है
न दलचूर यह विरद लीनो । हाथ हथियार गुणधार विस्तार वहु, पहिर दृढभाव यह सिलह कीनो ॥१०२॥ चढत सब वीर मन धीर असवार है, देख अरिदलनको मान भंजै । पेख जयवंत जिनचंद सवही कहै, आज पर दलनिको सही गंजै ॥१०॥ है अतिहि आनंदभर वीर उमगंत सव, आज हम भिडनको दाव पायो । युद्ध ऐसो विकट देख अरि थर हरें, होय हम नाम दिन दिन सवायो ॥१०४ ॥
मरहठा छंद. वजहिं रण तूरे, दल बहु पूरे चेतन गुण गावंत ॥
सूरा तन जग्गो, कोऊन भग्गो, अरिदलपै धावंत ऐसे सव सूरे, ज्ञान अकूरे, आये सन्मुख जेह ॥
आपावल मंडे, अरिदल खंडे, पुरुषत्वनके गेह ॥ १०५॥
(१) फौजी अफसर।। PhoneMPORPORanabepeppamonweapoP0000
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