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ब्रह्मविलास में
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धरणीन्द्र औ पदमावती तहँ, आय जिन सेवंतये । सुअनंत बल जुत आप राजत, मेरु ज्यों अचलत्तये । करि कर्म चार विनाश ताछिन, लह्यो केवल तत्तये । पूजिये पास जिनंद भविजन, नगर श्री अहिछत्तये ॥४॥
शत इंद्र मिल कल्याण पूजा, आय विविध रचत्तये । तिहँ काजतैं यह भूमि महिमा, जगतमें प्रगटत्तये ॥
भवि जात्रि आवें जिनहि ध्यावें, निजातम सर्दहत्तये ।
पूजिये पास जिनंद भविजन, नगर श्रीअहिछत्तये ||५||
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दोहा.
सावधान मन राखिकें, जे जिनगुण गावंत ॥
संपत्ति सुख तिनको सदा, गनत न आवै अंत ॥ ६ ॥ सत्रहसौ इकतीसकी, सुदि दशमी गुरुवार ॥ कार्तिकमास सुहावनो, पूजे पार्श्वकुमार ॥ ७ ॥ इति श्रीअहिक्षितिपार्श्वनाथनिनस्तुति.
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अथ शिक्षा छंद. दोहा.
. देह सनेह कहा करें, देह मरन को हेत ।
उत्तम नरभवपायकें, मूढ अचेतन चेत ॥ १ ॥ मरहठा छंद.
हे मूढ अचेतन, कछुइक चेतो, आखिर जगमें मरना है । नरदेही पाई, पूर्व कमाई, तिससों भी फिर टरना है ० ॥ टेक ॥ २ ॥ क्यों धर्म विसारो, पापचितारो, इन बातन क्या तरना है ॥ जो भूप कहाये, हुकुम चलाये, तौ भी क्या ले करना है, है मूढ ॥ ३ ॥
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