________________
१३६
ब्रह्मविलास में
महा भयानक सब वनराय । भटकत फिरै कछू न वसाय ॥ जित देखहि तित कानन जोर । परथो महा संकट तिहँ घोर ॥ १० सोचत वाघ सिंह जिने खाय । जिने कहुं वैरी पकर न जाय ॥ हि विधि दुखित महावन धाय। तिहँ धानक गज निकस्यो आय ११ ताकी दृष्टि परथो नर जहां । ता पकरन गज दोरथो तहां ॥ यह भाग्यो आर्गेको जाय । पाछें गज आवत है धाय ॥ १२ ॥ जो यह देखै दृष्टि निहार । यह तो रह्यो डगन द्वै चार ॥ अब मैं भागि कहां लों जाउँ । देख्यो कूप एक तिहँ ठाउँ ॥१३॥ परयो कूप मधि यह विचार । गज पकरै तो डारै मार ॥ कूप मध्य बड़ ऊग्यो एक । ताकी शाखा फली अनेक ॥ १४ ॥ तामहिं मधुमक्षिनको थान । छत्ता एक लग्यो पहचान ॥ बरकी जटा लटकि तह रही । कूप मध्य गिरते कर गही ॥ १५ ॥ दोडकर पकर रह्यो तिहँ जोर | नीचें देखै दृष्टि मरोर ॥ कूप मध्य अजगर विकराल । मुह फारे वैठ्यो जिम काल ॥१६॥ वह निरखहि आवै मुख मांहि । तो फिर भाजि कहां लों जाहि ॥ चार कौनमें नाग जु चार । बैठे तहां तेहु मुखफार ॥ १७ ॥ कब यह नर गिर है इह ठौर । गिरतें याको कीजे कौर ॥ नीचे पंच सर्प लखि डरयो । तब ऊपरको मस्तक करयो ॥ १८ ॥ देखे बटकी जटै कहँ दोय । ऊंदेरजुग काटत है सोय ॥ इक उज्वल इक श्याम शरीर । काटहि जटा नही तिहँ पीर ॥१९॥ कूप कंठ गज शुंड प्रकार । झकझोरै वरकी बहु डार ॥ पकर निशुंड चलावै ताहि । यह तो रह्यो दूर द्रुम साहि ॥२०॥
(१-२ ) मत ३. जटा. ४' दो चूहे.