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ब्रह्मविलास में
८ । राग सारंग.
जगतगुरु कवनिज आतम ध्याऊं जगत० टेक ॥ नग्नदिगंबरमुद्राधरिकैं कब निज आतम ध्याऊं ॥ ऐसी लब्धि होइ कब मोको, हौं वा छिनको पाऊं, जगत ०||१|| कव घर त्याग होऊं बनवासी, परम पुरुष ला लाऊं ॥
रहों अडोल जोड पदमासन, करम कलंक खपाऊं, जगत० ||२|| केवल ज्ञान प्रगट कर अपनों, लोकालोक लखाऊं ॥ जन्म जरा दुख देय जलांजलि, हों कब सिद्ध कहाऊँ, जगत० ॥ ३ ॥ सुख अनंत विलसों तिह थानक, काल अनंत गमाऊँ ॥ "मार्नसिंह" महिमा निज प्रगटै, वहुर न भवमें आऊं, जगत ● ॥ १४ ॥ ९ | राग धमाल गौडी.
गौड़ीप्रभु पारस पूजिये हो, मनधर परम सनेह, गौंडी० टेक । सकल - करम भय भंजनो हो, पूरै बंछित आश ।
तास नाम नित लीजिये हो, दिन दिन लीला विलास, गौडी० ॥२॥ केवलपद महिमा लखो हो, धरहु सुधिरता ध्यान ॥ 'ज्ञानमाहिं उर आनिये हो, इहिविधि श्रीभगवान, गौडी० ॥ ३ ॥ और सकल विकलप तजो हो, राखहु प्रभुसों प्रीति ॥ आप सरवर ए करें हो, यहै जिनंदकी रीति, गौडी, ॥ ४ ॥ जाके बदन विलोकते हो, नाशौ दूर मिथ्यात ॥ ताहि नमहुं नित भावसों हो, पास जगत विख्यात, गौडी० ||५|| १० । पुनः
...कहा परदेशीको पतियारो, कहा- टेक० । मनमाने तब चलै पंथको, सांज गिनै न सकारो । सबै कुटंब छाँड इतही पुनि, त्याग चलै तन प्यारो, कहा० ॥ १ ॥
(१) मानसिंह भैया भगवतीदासजीका परम मित्र था ।
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