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........................गुणमंजरी. तिनके लच्छन गुण कहूं, जिन आगम परमान ।। इह क्रम शिव फल लागि है, देख्यो श्री भगवान ॥७॥
चौपाई, दया कही द्वय भेद प्रकाश । निजपरलच्छन कहूं विकाश ।। प्रथम कई निज दया वखान । जिहमें सब आतमरस जान ॥८॥ ६ शुद्ध स्वरूप विचारहिं चित्त । सिद्ध समान निहारहिं नित्त ॥१ विरता घर आतमपदमाहिं । विषयसुखनकी वांछा नाहि॥९॥ रहे सदा निजरसमें लीन । सो चेतन निजदया प्रवीन ।।
अब दूजो परदया विचार । जो जानै सगरो संसार ॥१०॥ एं छहों कायकी रक्षा होय । दयाशिरोमणि कहिये सोय ॥
पृथिवी अप तेऊ अरु वाय । वनस्पती त्रिस भेद कहाय ॥११ मन वच काय विराधै नाहि । सो परदया जिनागममाहि ॥
अवतमें भावनितें टलै । यथाशक्ति कछु दर्वित पलै॥१२॥ है. ज्या कपायकी मंदित ज्योत । त्यो त्यों दया अधिक तिहहोत ।।
त्रसकी रक्षा निश्चय करै । देशविरत थावर कछु टरै॥१३॥ र सर्वदया छट्टे गुणथान | आगे ध्यान कह्यो भगवान ॥
और कहूं परदया वखान । ताके लक्षण लेहु पिछान॥१४ कष्टित देख अन्य जियकोय । जाके हिरदै करुणा होय॥ शक्ति समान करै उपकार । सो परदया कही संसार ॥१५॥
दोहा. . . . कही दया द्वय भेदसों, थोरेमें समुझाय ॥ याके भेद अपार हैं, जानै श्रीजिनराय ॥ १६ ॥ अव वत्सलता गुण कहूं, जो रुचिवंत सदीव ॥
लग्यो रह जिनधर्ममें, सो सम दृष्टी जीव ॥ १७॥ sido trascorreres
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