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ब्रह्मविलास में
सब जाय टर, पांय ढिग धरे पाप पंकति हनत है । वीतराग देव जूकी सेव कीजे दीपकसों, दीपत प्रताप शिवगामी यो भनत है ॥७॥ धूपपूजा. जिमि परम पवित्र हेम आनिये अधिक प्रेम, जाति धूपदान शुद्ध निपजाइकै । वह्नि जे विशुद्ध बनी तेज पुंज महाघनी, मानो घरी रत्न कनी ऐसी छवि पाइकै ॥ तामें कृष्णागरुकी जुकनिकाहू खेव कीजे, वह कर्मकाठनिके पुंजगहि ताड़कें । पूजिये जिनेन्द्र पांय धूपके विधान सेती, तीनलोकमाहिं जो सुवास वास छायकें ॥ ८ ॥
फलपूजा.
श्रीफल सुपारी सेव दाड़िम वदाम नेव, सीताफल संगतरा शुद्धसदा फल है | विही नासपाती ओ विजोरा आम अम्रतसे, नारंगी जंभीरी कर्ण फल जे कमल है । ऐसे फल शुद्ध आनि पूजिये जिनंद जान, तिहूँ लोकमधि महा सुकृतको थल है। फल सेती पूजे शुद्ध मोक्षफल प्राप्ति होय, द्रव्य भाव सेये सुखसंपति अचल है ॥ ९ ॥
अर्घविधिपूजा.
जल सुविशुद्ध आन चंदन पवित्र जान, सुमन सुगंध ठान. अक्षत अनूप है । निरखि नैवेद्यके विशेष भेद जान सबै, दीपक संवारि शुद्ध और गंध धूप है | फल ले विशेष भायं पूजिये जिनंद पाय, बसु भेद ठहराय अरथ स्वरूप है । कमल कलंक पंक हरिके भयो अटंक, सेवक जिनंद 'भैया' होत शिव भूप है ॥ १० दोहा.
शुचि करके निज अंगको; पूजहुं श्रीजिन पाय ॥ दर्वितं भावतविधि सहित, करहु भक्ति मन लाय ॥ ११ ॥
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