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चेतनकर्म चरित्र.
५७ है तुम मन में मत करहुगुमान । हम बहु हैं यहएक सुजान ॥
कर आवहु असवारी वेग । मैं भी वांधी तुमपरतेग ॥१८॥ हैं ऐसे वचन सुनतं विकराल । दूत लखै यह कोप्यो काल॥
उनसे तो जव है है रारि । तवलों मोह न डारैमारि ॥ १९ ॥ ॐ तब मन में यह कियो विचार । अवके जो. राखै करतार ॥
तो फिर नाम न इनको लेउ । चेतनको पुरसवतजदेउं ॥२०॥ है तव बोले चेतन राजान । जाहु दूत-तुम अपने थान ॥ फिर जिन आवहु इहिपुरमाहि। देखेसों वचिहो पुनि नाहि ॥ २१ ॥
सोरठा. . . दूत लह्यो प्रस्ताव; मन में तो ऐसी हुती ॥ __ भलो बन्यो यह दाव, आयो राजा मोह पै ॥ २२॥ कही सबै समुझाय, वाते चेतन राय की ।
नवहि न तुमको आय, लरिवे की हामी भरै ।। २३॥ सुनके राजा मोह, कीन्हीं कटकी जीव पैं। __ अहो सुभद सज होय, घेरो जाय गवार को ॥ २४ ॥ सज सज सवही शूर, अपनी अपनी फौज ले। __ आये मोह हजूर, अवै महल्लो लीजिये ॥ २५ ॥ .
. . चौपाई.. राग द्वेप दोउ बड़े वजीर । महा सुभट दल थंभन वीर ।। फौज माहिं दोऊँ सरदार। इनके पीछे सब परवार ।। २६ ॥ ज्ञानावरण वोले यो वैन । मोपपंच जाति की सैन । जिन जगजीव किये सवरा राखे भवसागर में घेर॥ २७॥
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(१) आक्रमण । (२) हाजिरी । (३) कैद ।। WAPWAPCORPREmpepomopanpoor