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भारतमें दुभिक्ष।
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सारांश यह कि समस्त भूमण्डलका गुरु भारत है। " हैं।' और 'ना' भी अन्य जन करना न जब थे जानते। थे ईशके आदेश तब हम बेदमंत्र बखानते । जब थे दिगम्बर रूपमें वे जंगलोंमें घूमते । प्रासाद-केतन-पट हमारे चन्द्रको थे चूमते ।"
-भारत भारती। जब अन्य देशोमें भारतीय-विद्यार्थी ईसा और हजरत मोहम्मद साहब सभ्यताका शंख फूक रहे थे उस समय तो हमारे भारतका उन्नति-भास्कर अस्ताचलके निकट पहुँच चुका था--उन्नति-गिरिशिखरसे हमारे देशका पैर फिसल चुका था, वह अधोमुखी हो पर्वतसे नीचे लुढकता हुआ आ रहा था। उस समय उसे सँभालनेवाला तथा अनिरुद्ध पतनसे बचानेवाला कोई नहीं था । हाँ, अपने गुरुको गिरते देख कर ताली बजा कर हँसनेवाले शिष्य, लुढ़कते हुएको और ढकेलनेवाले स्वार्थी यवनोंका पदार्पण भारतमें हो चुका था। यदि तत्कालीन, भारतकी साम्पत्तिक दशा, अन्न-धन आदिका भी वर्णन आप लोगोंके आगे रखा जाये तो संभवतः आप उसे असंभव कह देंगे और उस पर बड़ी कठिनतासे विश्वास करेंगे । मैं यवन-कालके आरंभका वर्णन न करके आजसे केवल तीनसौ वर्ष पूर्व अर्थात अकबरके समयका अन्नभाव आपके सम्मुख रखता हूँ:-- गेहूँ ४ आने ९ पाई प्रतिमन दालमँग० ७ आ० २पा० प्रतिमन्न जो ३ , २ ,
शक्क र १)रु ६,, ,, , बाजरा ३, ५, , घृत २),,१० " ०" " दालमोठ४ ,, ९ " "
तेल ° ,,१० ,, ,, चावल ८, , , प्याज °,, २, ५,
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