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भारत में दुर्भिक्ष |
which he lives. Upon its welfare his own welbeing depends and so the soundness of the democratic principle is self-evident."
अर्थात् - "प्रजातंत्र एक प्रकारका भाव ( साहस ) अथवा मानसिक विचार है, जो देशका प्रत्येक स्त्री-पुरुष रख सकता है और जिसकी स्वीकृति पर जातीय उन्नति अवलम्बित है । यह न तो दमनशक्तिही और न बकवादी नीति ही है; किन्तु यह एक ऐसी शक्ति है जिससे शासन और शान्ति स्थापित रह सके । क्योंकि सच्चे प्रजातंत्र राज्य में प्रत्येक मनुष्यको अपने देशके शासन में अधिकार होता है, और देशकी भलाई पर उसकी निजी भलाई निर्भर होती हैं, और इस भाँति प्रजातंत्र शासन के नियमकी दृढ़ता स्वयं सिद्ध है ।"
बीसवीं शताब्दीका पंच वर्षीय महाभारत पहली नादिरशाहीका शमन कर संसारको स्वाधीनता प्रदान करने के इरादे से, सर्वत्र प्रजातन्त्र स्थापित करनेके लिये हुआ था । इसी बीच राजनीति महोदधिमें स्वाधीनताका एक भारी तूफान उठ खड़ा हुआ, जिसके झोंके में कितनी राष्ट्र नौकाओंका संहार होगा, उसका कुछ ठिकाना नहीं । यह संसार में एक नये प्रकारका परिवर्तन है जिसे हम सुनने के साथ ही, शायद असंभव कह बैठें। खुलासा यह है कि रूस, जर्मनी, हालैंड, आदि अनेक देशों में एक ऐसे लोगों का दल खड़ा हो गया है जो अपनेको Socialist ( साम्यवादी ) नामसे अभिहित करता है । यह दल भूमण्डलके कोने कोने में उदार शासन या पूर्ण प्रजातन्त्र स्थापित कराना चाहता है । उसका प्रधान उद्देश्य दरिद्र और धनीको समान बना देना है, क्योंकि वह समझता है कि पृथ्वी पर स्थायी शान्ति ( Eternal peace ) स्थापित करने के लिये समाजमें सबका समान हकदार होना अत्यावश्यक है । यह इस लिये भी कि सारी बुराइयोंके तीन ही प्रधान कारण हैं । जर, जमीन और
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