________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२४
भारतमे दुर्भिक्ष ।
मादमियोंकी सहायता की गई । मध्यप्रदेशके अतिरिक्त सर्वत्र सुप्रः बन्ध रहा। इस कारण दुर्भिक्षका रूप देखते मौतें अधिक नहीं हुई।
(२२) पंजाब, राजपूताना, मध्यप्रदेश और 'बम्बईका अकाल सन् १९००। __ यह भी भारतके अकालोंमें बहुत बड़ा अकाल था। ६० लाख भादमी Relief work पर थे, तो भी मौतें बहुत हुई।
आज बीसवीं शताब्दीको आरंभ हुए अभी बीस वर्ष ही बीते हैं, परन्तु प्रायः प्रति वर्ष ही सार्वभौम नहीं तो प्रान्तिक या स्थानीय दुर्भिक्ष भारतमें बना ही रहा है, उत्तरोत्तर दुर्भिक्षने सुरसा राक्षसीकी भाँति अपना कराल मुख पसारना आरंभ कर दिया है। देशमें दुर्भिक्ष सर्व-संहारी रुद्र रूप धारण कर यत्र तत्र घोर ताण्डवनृत्य कर रहा है। इतने पर भी हम बेसुध, अचेत पड़े हैं।
जब जब अकाल पड़ हमारी सरकारने हमें सहायता दी, किन्तु जितनी चाहिए उतनी नहीं ! हम बंगालके १८७४ ई० वाले दुर्भिक्षके सुप्रबन्धको देख कर जितने प्रसन्न हुए, उससे कई गुना दुःख सन् १८७७ के मदरासवाले दुर्भिक्षका कुप्रबन्ध देख कर हु । राजा हरिश्चन्द्रके समयमें लगातार उनके राज्यमें १२ वर्ष तक दुर्भिक्ष पड़ा, तब राजाने अपने भोजन बनानेके पात्र तक बेच कर प्रजाकी रक्षा की थी। राजा स्वयं सकुटुम्ब भूखे बैठे थे कि महर्षि विश्वामित्रने आकर द्रव्यकी इच्छा प्रकट की, जिसके कारण राजाने अपनी रानी और पुत्र सहित कितने कष्ट पाये यह बात प्रत्येक भारतवासी जानता है । हमें अब भी भारतके लिये वैसे ही शासकोंकी आवश्यकता है जो प्रजाके हितके लिये अपने प्राण तक सम
For Private And Personal Use Only