Book Title: Bharat me Durbhiksha
Author(s): Ganeshdatta Sharma
Publisher: Gandhi Hindi Pustak Bhandar

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Page 265
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ भारतमे दुर्भिक्ष । -भूखों मरें और विदेशों के दुःख मोचनके लिये लाखों मन गेहूँ जहाजोंमें लाद कर बाहर भेज दिया जाय । मद्रास और बंगालमें अनकी - कमी के कारण लूट-मार हो चुकी है। वह इस भयंकर स्थितिका *पष्ट परिचय दे रही है । आवश्यकता है कि भारत सरकार आँख - खोल कर इस विषय पर विचार करे । न्याय यह है कि तीस करोड़ भारतवासियोंके लिये आवश्यक अन्न देशमें रख कर यदि बचे तो बाहर भेजा जाय । 6 पाटलिपुत्र " बाँकीपुर आश्विन कृष्ण ९ सं० १९७५ के - अंक में लिखता है कि वर्तमान यूरोपीय महायुद्धने यूरोप में ही नहीं; बरन् समस्त संसा रमें जो हलचल पैदा कर दी है, जिस प्रकार से संसारकी जनता अनेक कष्ट सह रही हैं, उसका विशेष वर्णन करना अनावश्यक है । यूरोपमें युद्ध हो रहा है । अतः वहाँ की सर्व साधारण प्रजा जो कष्ट सह रही है, वह अनिवार्य है; पर हम देख रहे हैं कि जिन देशों में युद्ध नहीं, वे देश भी आज उक्त युद्धके कारण विशेष कष्ट सह रहे हैं। यूरोपको छोड़ कर एशियाई देशों में जो दुःख इस समय भारत झेल रहा है, उसकी तुलना अन्य देशोंसे नहीं हो सकती । निव्यके व्यवहार में आनेवाली प्रायः सभी चीजें इस समय ऐसी महँगी हो गई हैं और होती जा रही हैं कि भारतीय सर्व साधारण प्रजाको लज्जा और क्षुधा निवारण करना बड़ा ही दुस्साध्य हो पड़ा हैं 1 रूई इस समय आठ छटाककी बिक रही है; लोहा, तांबा, पीतल, राँगा, जस्ता, शीशा आदि धातु और उपधातुओंकी महँगी तो वर्षों से दुःख पहुँचा रही है । कपड़े की महँगीने जो अपार कष्ट भारतीयोंको 7 1 For Private And Personal Use Only

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