Book Title: Bharat me Durbhiksha
Author(s): Ganeshdatta Sharma
Publisher: Gandhi Hindi Pustak Bhandar

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Page 267
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ भारतमें दुर्भिक्ष । लड़ाईसे कोई विशेष सम्बन्ध नहीं, वे भी इस समय महँगी होती जा रही हैं । लोहा आदि धातुओंके खरीदनेवाले व्यापारी जब लोहा, पीतल, प्रभृति तेज भावमें खरीदते हैं, तब वे अपनी चीजें भी महँगी बेचते हैं । इस समय वस्त्रके रोजगारी वस्त्र महँगा बेच कर जब पैसे कमा रहे हैं, तब अन्नके व्यापारी कपड़ेकी लागतको महँगी बेच कर पूरा करने में लगे हैं। बात यह है कि इस समय प्रत्येक वस्तुका व्यापारी एक चीज महँगी खरीदता तो अपनी चीजें भी महँगी बेच कर अपने घाटेको पूरा करना चाहता है । व्यापारियोंकी इस ऊपरा-चढ़ीमें उन्हीं लोगोंकी खराबी है जो लोग कोई रोजगार नहीं करते और बँधी हुई आमदनी रखते हैं। साधारण जमींदारों, महाजनों और नौकरी पेशेवालोंको इस महँगीसे विशेष कष्ट सहना पड़ता है। कम मासिक पानेवाले नौकर तो इस समय बे तरह मर रहे हैं। दस-पन्द्रह रुपये मासिक आयमें परिवारका भरण-पोषण करना इस समय एक बारगी ही असम्भव है। नीचेकी सूचीके देखनेसे पाठकोंको मालूम हो जायगा कि गत जून में अन्नादिका क्या भाव था और इस समय क्या भाव है। जिन्नसका नाम, जूनकी दर, इस समयकी दर । चावल ४) गेहूँ २) दाल अरहर चना मसूर खेसारी ६) ४) ४॥) २) १०) ३) For Private And Personal Use Only

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