Book Title: Bharat me Durbhiksha
Author(s): Ganeshdatta Sharma
Publisher: Gandhi Hindi Pustak Bhandar

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Page 268
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुर्भिक्ष। २३९ उर्द २६) २१) १३) ५।) मूंग ६॥1) ४) ७॥ सरसोंको तेल १८) दानेका तेल रेडीका तेल ३५) रेड़ी दाना ८11) सरसों ८॥) ऊपरके लेखेमें पाठक देखेंगे कि तीन महीनोंमें खाद्य पदार्थोकी दर किस रूपमें बढ़ गई। यदि इस प्रकार दर बढ़ती गई तो देशकी क्या दशा होगी, सो सरकारको खूब ध्यान पूर्वक सोच रखना चाहिए। कितने ही लोगोंका कहना है कि खानेपीनेकी चीजें यदि विदेशमें न भेजी जायें तो आज कम वर्षा होने पर भी देशमें इतना अन्न है,जिससे प्रजाका किसी प्रकार निर्वाह हो सकता है। वर्षा की कमी और अधिक तासे यद्यपि विशेष उपज नहीं नहीं हुई है,पर'काम चलने लायक अन्न कई प्रान्तोंमें हो जायेगा। फलतः भारतीय सरकारका कर्तव्य है कि वह, इस समय अन्नका विदश जाना यथाशीत्र रोक दे । संवत १९५६ के अकाल में जिस भावसे अन्न बिकता था, इस समय कई अन्नोंका भाव उससे भी चढ़ा हुआ है । उस समय घी २६) २७) मन तक बिक गया था। और और भी कितनी ही आवश्यक वस्तुएँ सस्ती थीं; पर इस समय तो खाने पहनने आदिकी सभी चीजोंमें आग लगी है । फलतः यदि वर्तमान अकालका कोई उचित प्रबन्ध सरकार न करेगी तो देशकी अवस्था बड़ी ही भयानक हो जायेगी। For Private And Personal Use Only

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