Book Title: Bharat me Durbhiksha
Author(s): Ganeshdatta Sharma
Publisher: Gandhi Hindi Pustak Bhandar

View full book text
Previous | Next

Page 257
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ भारतमें दुर्भिक्ष । रहता है । वहाँके निवासी अपने अन्न द्वारा केवल तीन महीने पेट भर सकते हैं ! यदि वहाकी प्रजासे भी सरकार कहे कि "हम तुमको सहायता नहीं दे सकते, क्योंकि भूमि उपजाऊ नहीं है। इससे केवल तीन महीने का खर्चा चलता है, इस लिये तुम लोग बाकी नौ महीने निराहार रहो । " तब वहाँकी प्रजा क्या कहेगी ? वहाकी प्रजा स्वाधीन विचारोंकी है, वह तुरन्त सरकारके विरुद्ध हो जावेगी और मंत्रि-मंडलको पदत्याग करनेको विवश करेगी। वह कह देगी "If you cannot give food for twelve months you had better resign, and we shall have another ministry and another Parliament.” अर्थात्-यदि तुम हमें वर्षभरका भोजन नहीं दे सकते तो तुम्हें चाहिए कि अपने अपने पदोंको त्याग दो, हम दूसरे मंत्रिमंडल अथवा पार्लियामेंटकी योजना कर लेंगे-" इत्यादि । सन् १९०० के बाद आज तक नित्य ही अकाल पड़ते चले आ रहे हैं। सन् १९१८-१९१९ का कराल दुर्भिक्ष आप देख चुके हैं, ऐसी अभूत-पूर्व महँगी आज तक नहीं देखने में आई थी। कोई वस्तु, ऐसी नहीं जिसकी दुगुनी चौगुनी कीमत न हो गई हो। यहाँ तक कि रेल भी महँगी हो गई, उसके भाड़ेमें भी वृद्धि हो गई । तार, डाक सभी महँगे हो गये । कैसा भयंकर समय है ! पशुओंके लिये तण भी अत्यन्त महँगा मिलता है। भारतके प्राणियोंको, क्या मनष्य, क्या पशु-पक्षी, सभीको अपने जीवन में सन्देह है। इस विषयमें हम यहाँ कुछ समाचार-पत्रों में प्रकाशित लेख पाठकोंके For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287