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भारतमे दुर्भिक्ष ।
बंदीसे वे लूट करने पर आमादा न होते। यही नहीं चारों ओरसे कई छोटी मोटी हाटों और दूकानोंके लुटनेकी खबर आ रही है और देहातों में लूट-मार तथा चोरीकी तादाद दिन पर दिन बढ़ रही है । जो इस मँहगीका कोई इलाज न हुआ तो देशके भीतर शान्ति बनी रहना असम्भव है । देश में पूरी शान्तिकी जरूरत है । देश के भीतरकी अशान्ति आगकी चिंगारीका काम देती है । रूसकी जो हालत हुई यह वहाँ के लोगों की तंगीके बेहद बढ़ जाने से हुई थी। लोग जारसे बराबर प्रार्थना करते थे। आखिर सबका यह विश्वास हुआ कि जार और उनकी सरकार ही हमारे कष्टोंकी कारण है । इसी गलत खयालीके कारण वहाँ बलवा हुआ जिसमें जार और उनकी सरकार पकड़ी गई | मतलब देशके भीतरकी अशान्ति आगकी चिंगारी है। इन दोनों में से बिना एकको मिटाये काम नहीं चल सकता | हमारे देश में हर एक चीजकी बेहद मँहगी और खास कर अनाजकी कमीसे प्रजामें भशान्ति बढ़ चली है और साथ ही लड़ाई भी हमारी ओर बढ़ रही है। ऐसी हालत में इसकी उपेक्षा करनेसे काम नहीं चल सकता ।
अकाल हो गया और यह अकाल कितना नाजुक है सो हम ऊपर बता चुके हैं। अब सरकारको क्या करना चाहिए जिससे यह नाजुक हालत मिटे और लड़ाई में विजय हो । सबसे पहले तो सरकारको उस स्वार्थत्यागके करने की जरूरत है जो वह प्रजासे करनेको कहती है । हमारे देशकी यह हालत है कि लाखों मनुष्य चिना अनाज भूखों मर रहे हैं, पर सरकार दान-पुण्य करने में लगी है । पहला दान सरकारने वलायतको डेढ़ अरब रुपयेका दिया ।
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