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तमाखू ।
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विशेष लगती है और तब प्यासको शांत करनेके लिये किसी नशेदार वस्तुको व्यवहारमें लानेकी इच्छा होती है।" वे युवक जो नशीली बस्तुओंका प्रचार रोकते हैं या जो टैम्प्रैन्सका काम करते हैं, कहते हैं कि तमाखू न पीनेवालोंकी अपेक्षा पीनेवाले अधिक बार अपनी सौगन्धको तोड़ते हैं। डाक्टर वुडबर्ड कहते हैं कि तमाखू पीने या खानेवालोंको पानी अथवा इस भैातिकी दूसरी वस्तु पीनेसे तृप्ति नहीं होती। डाक्टर कार्ण एम० डी० साहबका कथन है कि तमाखूके साथ शराबका ऐसा सम्बन्ध है जैसा कि दिनके साथ रातका है। __ ऊपर लिखी बातोंसे स्पष्ट सिद्ध होता है कि तमाखू भारतवर्षकी दुर्दशाका भी एक कारण है, क्योंकि यही भाँग, गाँजा, चण्डू, चरस, अहिफेन, मदिरा आदि मादक द्रव्योंका प्रचारक है । मादक द्रव्योंस देशका कितना अनिष्ट होता है, इसका विज्ञ पाठक स्वयं अनुमान कर लें । इन नशोंसे भारत दिन दिन दरिद्र होता जा रहा है। नशेखोर भोजनमें कमी कर देते हैं, पर नशे में नहीं करते। नशेबाजी ही भारतवासियोंको चोर, व्यभिचारी, जुआरी, अनाचारी कर रही है । अधिकांश निर्धन भारतीय ही नशेबाज देखे गये हैं। उनके पास खानेको नहीं है, पर नशा वे अवश्य करते हैं। कभी कभी अपनी आदतको, अपनी इच्छाको पूर्ण करने के लिये उन्हें चोरी तक करनी पड़ती है। भला ऐसा इश जो नशा अधिक करता हो, किस भाँति अपनी उन्नति कर सकता है ? नशेके कारण भारत निर्बल हो गया, निर्धन हो गया, बुद्धिहीन हो गया और आज भूखों मर रहा है ! देशका अगणित द्रव्य भारतवासियोंकी नशेखोरीमें नष्ट हो रहा है। भारत-गवर्नमेण्टने यदि इसे रोकनेका प्रयत्न किया है तो वह केवल यही कि उस पर टैक्स बढ़ा
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