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भारत में दुर्भिक्ष |
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शीत ऋतु में लोग इसे
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बना रहे तो पत्थरके कोय -
ही हैं । इसी भाँति तार, टेलीफोन, ट्राम इत्यादिके विषय में भी समझिए । प्रायः रेल और मिलोंके एञ्जनों में जो पत्थरका कोयला जलाया जाता है, क्या कभी आपने इसके भयंकर परिणाम पर भी दृष्टि डाली है । आपको यह तो मालूम होगा ही कि पत्थरके कोयले का धुआँ एक अत्यंत विषैला पदार्थ है । कई बार शीत निवारणार्थ जला कर मकान बन्द करके रातको सो गये हैं और सुबह देखा गया है कि उस मकान में एक भी मनुष्य जीवित नहीं है, सब मर गये हैं । इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि यह कोयला स्वास्थ्य-नाशक वस्तु है । भारतवर्ष में करोड़ों मन कोयला प्रति दिन जलता है, फिर भला भारतमें प्लेग यदि सदैव क्या आश्चर्य हैं ? एक विज्ञानवेत्ता का कहना है कि लेका धुआँ वृष्टिका घोर शत्रु है। इसी भाँति उसने पेटरोल और मिट्टी के तैलके धुएँको भी वृष्टि के लिये अत्यन्त हानिकारक बताया है । उसका कहना है कि वह पदार्थ जो वृष्टिके लिये उपयोगी है और निरन्तर वायु मण्डलमें रहता है, कोयले के धुंएँसे बिलकुल नष्ट हो जाता है । यदि कोयला भी न जलाया जाए और उसकी जगह जंगल काट कर लकड़ियाँ काममें लाई जाएँ, तो भी वनोंके कट जाने से वृष्टि कम हो जायगी । यद्यपि अधिकांश एंजनों में लकड़ियाँ नहीं जलाई जाती हैं तथापि अन्य कई कारणोंसे भारतके जंगलके जंगल काट डाले गये हैं । इसी कारणसे और पत्थरके कोयले के धुंएँ आदि अन्य कारणोंसे भारत में भली भाँति वर्षा नहीं होने पाती और वर्षा न होने से सदैव देश में दुर्भिक्ष पड़ा करते हैं। यदि एक कारण ही दुर्भिक्षका हो तो भी सन्तोष कर लिया जाये, किन्तु यहाँ
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