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कुछ और भी।
२१३ रोज बचा लेते हैं, परन्तु भारतवासियोंको बचाना तो दूर रहा भर पेट अन खाना भी भाग्यमें नहीं बदा । भारतकी वार्षिक आय औसतसे प्रति मनुष्य १६॥३) है और बहुत जरूरी एवं मामूली खर्च ३०) रु. वार्षिक है अर्थात् प्रत्येक आदमीके लिये १३०) की कमी पड़ती है ! बस हद हो चुकी । यदि आप और हम भर पेट अन्न पा लेते हैं तो उससे तुष्ट न हो जाइए। यहाँ अनेक गावके गाँव भूखों मरते हैं । अनेक वंश दुर्भिक्षने समूल नष्ट कर दिये, अनेकों भारतकी दशा सुधारनेवाले भावी रत्न सदाके लिये उठा लिये। __ भारत भूखों मर रहा है, दुर्भिक्ष सिर पर घूम रहा है, ऐसी अवस्थामें बेसमझे-बूझे संतान उत्पन्न करते चले जाना बिलकुल अनुचित है। बेहद संतानोंका पैदा होना ठीक नहीं। क्योंकि भारतवर्ष में कष्ट बढ़ेगा, दरिद्री बढेंगे, भुखमरोंकी वृद्धि होगी, उत्साह-शन्य पुरुष और अभागी स्त्रिया बढ़ेगी। क्योंकि जन-संख्याकी इस प्रकार निस्सीम वृद्धि होने पर उनके खाने-पहननेको भी चाहिएगा, वे नंगे रह कर वायु भक्षण करके तो जियेंगे ही नहीं। ऐसी दशामें इस जनवृद्धिको रोकने का भी ध्यान होना चाहिए। इसके लिए सबसे उत्तम उपाय एक ब्रह्मचर्य है जो भारतवर्षके लिये सब प्रकारसे उपयोगी है।
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