Book Title: Bharat me Durbhiksha
Author(s): Ganeshdatta Sharma
Publisher: Gandhi Hindi Pustak Bhandar

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Page 247
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ भारतमें दुर्मिक्ष। ८ , सन् १७४५ तक अन अठारहवीं शताब्दीमें सन् १७६९ से लेकर सन् १८०० तक तीन दुर्भिक्ष पड़े जो देशव्यापी नहीं थे। (१) सन् १७०० ई० में बंगालमें । (२) १७८३ ई० में बम्बई और मद्रासमें । (३) सन् १७८४ ई० में उत्तर भारतमें। सन् १७४५ तक ७५० वर्षों में सब मिला कर भारतवर्ष में केवल भठारह दुर्भिक्ष पड़े जो देशव्यापी नहीं थे, स्थानीय या प्रान्तीय ही थे। उन अकालोंमें भी लोगोंको रूपयेका पन्द्रह बीस सेर तकका भन्न खानेको मिल जाता था। __ अब जरा उन्नीसवीं शताब्दीको देखिए । सन् १८०० से सन् १८२५ तक पाँच दुर्भिक्ष पड़े। जिनमें लगभग दस लाख मनुष्योंकी मृत्यु हुई । १८२६ से १८५० तक दो अकाल पड़े, जिनमें पाँच लाख मनुष्य मृत्युके पास हुए । सन् १८५१ से १८७५ तक ६ दुर्भिक्ष पड़े, जिनसे ५० लाख आदमी यमालयमें पहुँचे । सन् १८७६ से १९०० तक १८ दुर्भिक्ष पड़े, जिनमें लगभग दो करोड़, साठ लाख मनुष्य काम आए। इन सौ वर्षोंमें सब मिला कर ३१ दुर्भिक्ष पड़े, और सवा तीन करोड़ भारतवासियोंने भूखों मरते, बिना अन्न छट-पठाते हुए, प्राण परित्याग कर दिये । For Private And Personal Use Only

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