Book Title: Bharat me Durbhiksha
Author(s): Ganeshdatta Sharma
Publisher: Gandhi Hindi Pustak Bhandar

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Page 244
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुर्भिक्ष। . २१५ लगा कि बालक २४ घंटेसे भूखा है और उस स्त्रीके पेटमें तीन दिनसे कोई चीज नहीं पहुँची है। भूखों मरते लोगोंको एक प्रकारका पत्थर पीस-पीस कर खाते देखा है, जिसे खाकर वे भी मर गये । शिव ! शिव ! कैसा भयंकर दृश्य है! बनारसकी ग्रामीण पाठशालाओंको एक बार स्व० मिस्टर कैरहार्डीने अचानक मोटर गाडी द्वारा पहुच कर देखा तो उन्होंने पाठशालाओंके हेडमास्टरोंको एक अत्यंत मैली धोती, जो कई जगहोंसे फटी-पुरानी थी, आधी ओढे और आधी पहने पाया। पूछनेसे मालूम हुआ कि बाजरेका भात, मटरकी दाल और वलोंका शाक भोजन मिलता है । २४ घण्टों में एक बार वे भोजन करते हैं। सायं-प्रातः किसी एक समय चबेना चबा कर क्षुधा निवारण कर लेते हैं । पानीकी छुट्टी हुई तो विद्यार्थी एक भैलीसी पुटलीमेंसे निकाल कर कुछ खाने लगे, यह तो वह अन्न है जिसे पशु और पक्षी खाते हैं । जिसकी पुटलियामें एक गुड़का टुकड़ा है वह एक अच्छे गृहस्थका लड़का है जो औरोंको दिखा-दिखा कर बड़े गर्वके साथ खाता है। वह सबमें अपनेको धनी समझता है। क्या भारतकी यह दुर्दशा देख कर एक देशहितैषीके नेत्रों में दो ऑस नहीं आवेंगे ! स्वर्गीय सर रमेशचन्द्रदत्तने कहा है कि "The Immediate cause of famines is al. most every instance in the failure of rains; but if we honestly seek for the true causes without prejudice or bias we shall not seek in vain. The intensity and the frequency of recent famines are greatly due to the resourceless For Private And Personal Use Only

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