Book Title: Bharat me Durbhiksha
Author(s): Ganeshdatta Sharma
Publisher: Gandhi Hindi Pustak Bhandar

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Page 229
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० भारतमें दुर्भिक्ष । कि इनके दूर करनेके लिये धनकी आवश्यकता है और देश निर्धन है,अत एव रात-दिन नये नये मानव-संहारी रोगोंका भारतमें आगमन हो रहा है । इसके अतिरिक्त अभी तक भारतवासियोंने शुद्ध अन्न, जल एवं वायुके अनुपम गुणोंको भी नहीं जाना है । हम देखते हैं कि रात्रिका सोने के समय वायु आनेके सभी मार्ग बन्द कर दिये जाते हैं, यहाँ तक कि चार अंगुलके छिद्रको भी वे कपड़ा ठूस कर मूंद देते हैं । कारण वे गरीब हैं, भूखे हैं, अतः चोरोंके घुस आनेका डर उन पर सवार रहता है । दरिद्रताक कारण प्रत्येक मनुष्यके अलग अलग रहनेको मकान नहीं बनाये जा सकते, इस लिये आठदस हाथ लम्बे-चौड़े मकानमें सात या आठ मनुष्य एक हो बिछौने और ओढनेमें घुस कर सो रहते हैं, वहीं रसोई बनती है, उसा घरमें हँाडी-कँडे तथा अन्य सामान पड़े हैं, वहीं एक कोनेमें पानी रखनेका स्थान है ! बात यह है कि एक तो उन्हें इतना ज्ञान नहीं होता कि एक बिछौनेमें दो मनुष्योंके सोने, रसोई-वर एवं शयनागार एक होने तथा वहीं पानीके रखनेका स्थान होनेसे क्या क्या भयंकर हानियाँ होती हैं । दूसरे यदि ज्ञान भी हो तो दरिद्रताके कारण वे विवश हैं। क्योंकि प्रत्येक कार्य के आरंभमें सबसे पहल धनका प्रश्न सामने आता है: The Mud huts of people favour spread of plague. But they are built of mud because,that is generally the only material, the builder can obtain” “......He inhabits a mud hovel, in the middle of a crowded village surrounded by For Private And Personal Use Only

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