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भिक्षुक।
१८५ मदक, अफीम और भंग जैसे बुद्धि-बिनाशक पदार्थों का सेवन करते हैं । भिखमंगोंमें प्रायः ये दूषण होते ही हैं; क्योंकि उन्हें कमाना नहीं पड़ता; मुफ्तका माल हाथ लगता है, फिर जो जो कुकृत्य न हों वे थोड़े ही हैं। ऐसे पुरुषोंमें नैतिक बुराइया होना स्वाभाविक बात है।
अब देखना चाहिए कि इस भिक्षुक महामण्डलका, जिसके साठ लाखसे अधिक सभासद हैं, खर्च कहाँसे चलता है और कितना व्यय होता है ? कहनेकी आवश्यकता नहीं कि इनका भरण-पोषण भारतवासियोंके ही सिर है, क्योंकि वे तो परिश्रम करना पाप समझते हैं । इनका अच्छे भोजन, अच्छे वसन तथा नशे आदि सबका खर्च लगाया जाय तो एक अच्छे गृहस्थसे कहीं अधिक ही खर्च निकलेगा। किंतु यदि औसतसे आठ रुपया प्रतिमास प्रति भिक्षुक भी मान लिया जावे तो भी उनका खर्च ४९००००००) रु० वार्षिक बेचारे दीन, दरिद्र, दुर्भिक्ष-पीड़ित, भूखे भारतवासियोंके ही सिर है !
जब तक भारतमें भिखमंगे हैं तब तक भारतकी दशा सुधरना कठिन है । क्योंकि भिखारी बड़े ही अनाचारी और अत्याचारी होते हैं । देखिए भिखारी रावणने सीता हरी । भिखारी विष्णुने वृन्दाका सतीत्व नष्ट किया। भिखारी विष्णुने बलिको छला। भिखारी विश्वामित्रने हरिश्चन्द्रको छला । भिखारी महादेवने वनमें ऋषिपत्नियोंको लज्जित किया। भिखारी अर्जुनने बलदेवजीको धोखा दिया। भिखारी कृष्णने जरासंघका नाश कराया । भिखारी नारदने मोरध्वजके पुत्रका बध कराया। भिखारी त्रिदेवने अनुसूयाके
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