________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८८
भारतमें दुर्भिक्ष ।
कारीगर मातृभूमिके भाररूप बन मजदूरी करनेको लाचार हुए हैं। लाखों मनुष्यों पर गत तीस वर्षोंमें जो यह विपद् आई है वह व्यापारके आँकड़े या पाश्चात्य ढंगके कारखाने बढ़नेसे दूर नहीं हो सकती । खाद बाहर भेजने और कण्डे जलानेसे खेतीमें जो वृद्धि हुइ है उससे विशेष लाभ नहीं हो सकता। भारत ऋणी देश है
और विदशियोंके अपना मुनाफा फिर इसी देशमें लगा देनेके कारण इस पर बाहिरी लोगोंका दावा ह । इस देशकी मालियत अधिकाधिक बन्धक हो रही है, क्योंकि जिस आसानीसे देशमें विदेशी मूलधन लगाया जा सकता है, और शीघ्रतासे विदेशियोंके नील-चायके बागीचों, खानों, जंगलों, जहाजी-कम्पनियों, रेल-कारखानों, बैंकों आदिमें लगा रुपया बढ़ रहा है और जिस कारण इस देशमें प्रति वर्ष कर रूपसे बहुत सा रुपया विदेश चला जाता है उससे हमें अपनी आर्थिक अवस्था पर विचार करना चाहिए। जो १० करोड़ पौण्ड या डेढ अरब रुपया हमने बृटिश सरकारको दिया है, उसका अर्थ यह है कि इस देशके उद्योग-धन्धे तीस वर्षके लिये बन्द कर दिये गये । भारतका १ अरब रुपया विदेशमें भी लगा है; जिसमें प्रायः सत्तर करोड़ तो पेपर-करेन्सी-रिजर्व में और प्रायः तीस करोड़ गोल्ड-स्टेण्डर्ड-रिजर्व या स्वर्ण-भाण्डारमें है। यह एक अरब रुपया गरीब भारतने बहुत धनी देशको ३॥) से ४||) रु. सैकडे ब्याज पर दिया है और इसमें प्रत्येक १०० का दाम आज ५३ से ७० रह गया है । जब विदेशों में हमारी इतनी कम रकम लगी हुई है और उसका दाम इस तरह घट रहा है, तब हिन्दुस्थानमें विदेशियों द्वारा परिचालित ज्वाइण्ट स्टॉक कम्पनिया और प्राइ. वेट कारखाने बढ़ रहे हैं । होम चार्जेज या हिन्दुस्थानके विलायती खर्चके विषयमें जो बातें हैं उनसे ये भिन्न और अधिक महत्त्वकी हैं
For Private And Personal Use Only