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- आर्थिक दशा।
यह है कि इस देशके लोगोंकी अवस्था बड़ी ही सोचनीय है, और जब व्यापारके आँकड़े दिखा कर हमें हमारी समृद्धि बताई जाती है तब वह कटे पर नमकका काम करती है; क्योंकि वास्तव में समृद्धिके बदले दरिद्रता है और आँकड़ोंकी बाजीगरी उसे समृद्धि बताती है । परलोक-गत मि० डिगबीने 'अपने समृद्धशाली भारत' नामक ग्रंथमें सिद्ध कर दिया है कि भारत बड़ा गरीब देश है और उसमें इध. रके अकालोंमें जितने मनुष्य मरे हैं उतने सौ वर्षोंकी लड़ाइयोंमें भी नहीं मरे हैं। भारत-पितामह दादाभाई और मि० डिगबीके सरकारी कागज-पत्रोंसे भारतकी दरिद्रता सिद्ध करने पर भी अभी तक यह सुनने में आ रहा है कि भारतकी आर्थिक उन्नति हो रही है। कलकत्ता विश्वविद्यालयमें, भूतपूर्व अर्थशास्त्राध्यापक श्रीयुत् मनु सूबे. दारने बम्बई के सिडनहम व्यापारिक कॉलिजकी ग्रेज्युएट्स एसोशियेशन और स्टूडेण्ट्स यूनियनकी ओरसे सप्रमाण सिद्ध कर दिया है कि ३० वर्षों में भारतकी आर्थिक उन्नति होनेकी जो बात कही जाती है वह कल्पना-मात्र है। मि० सूबेदारका कहना है कि व्यापारके आँकड़ोंमें वृद्धि या रोकड़-बाकी, सोनेकी आमद या ज्वाइंट स्टाक कम्पनियोंके मूलधनमें वृद्धि तथा घूमधामी दिल्ली-दरबार जैसी बाहरी बातें भारतकी समृद्धिकी झूठी कसौटियाँ हैं।
परन्तु यदि भारत समृद्ध नहीं है तो व्यापार बढ़ता क्यों दिखता है ? मि० सूबेदार कहते हैं कि २५ लाख आदमी प्रति वर्ष बढ़ रहे हैं और भारतमें " औद्योगिक क्रांति " नामकी विपत्ति आई है, इस लिये भारतका व्यापार बढ़ रहा है । जो चीजें खाई नहीं जाती उनकी तथा कच्चे मालकी खेती बढ़ रही है और रेलें होनेके कारण यह कच्चा माल यहाँ तैय्यार होने के बदले विदेशोंको चला जाता है । भारतवर्षकी शिल्पकलाका नाश हो जानेसे चतुर
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