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स्वदेशी वस्तु तथा पहिनावा।
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दुर्दशा न कीजिए। थोड़ी शक्तिको आवश्यकता है, फिर यह भयंकर तूफान आपको तनिक भी विचलित नहीं कर सकेगा। सारांश यह कि अनुकरणकी मात्रा कम करनेसे हमारा सुधार एकदम हो जायगा । देशको धनी बनने में कुछ भी देर न लगेगी, फिर दुर्भिक्ष तो आपसे आप दबे पाँव भाग जावेगा। __ जो औषधि मरु-वासियोंको लाभप्रद है, वही मालव निवासियोंकी मृत्युका कारण हो सकती है। जो पहिनावा पंजाबियोंका है वह बंगाली पुरुषोंको नितान्त असुविधा-जनक होगा। तो इंग्लैण्ड जैसे सुदूरवर्ती देशका-जो सात समुद्रोंके परले तट है-पहिनावा भारत जैसे गर्म देशके लिये क्यों कर लाभदायक हो सकता है ! इंग्लैण्ड आदि देश शीत-प्रधान हैं । वहीं शीत-जन्य जन्तुओंजैस खटमल, पिस्सू आदिसे--और ठंडसे बचने के लिये तंग और कपड़ों पर कपड़े होते हैं, पर भारतवासी न जाने कैसे हैं जो बिना सोचे विचारे अपनेको यूरोपियन पौशाकसे विभूषित कर बाजार में अँकड़ते हुए निकलते हैं। नेकटाईके-जो ईसाकी फासीका चिन्ह हैं ( १ )--रामकृष्णके उपासक गले में देखा-देखी बांधते हैं। यहाँ तक कि सिर पर, टोप भी अपनेको पश्चिमी सभ्यता एवं पोशाकका गुलाम प्रकट करनेके लिये लगाते हैं। रंग भले ही बिलकुल काला क्यों न हो, सूरतसे भले ही प्लेग क्यों न भड़कता हो, बालक जिन्हें देख कर प्रेत या राक्षस भले ही कहते हों, पर वे तो अपने सिर पर 'हेट' ( टोप ) जरूर ही लगावेंगे। स्वर्गीय महात्मा गोपालकृष्ण गोखले गौरवर्णके खूबसूरत व्यक्ति थे, किंतु उन्होंने एक बार भी विलायतमें अपने सिर पर अँगरेजी टोपी नहीं रखी, वे वही
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