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तमाखू ।
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तमाखू ।
री सम्मतिमें वह मनुष्य जो तमाखूका सेवन करता है, कभी जापति या पिता बननेके योग्य नहीं है। अपनी स्त्रीके सामने इस प्रकार बेहया और निर्लज्ज होनेका उसको कुछ भी अधिकार नहीं है, और अपने बच्चोंको चिर रोगी, निर्बल-शरीर बनानेका भी उसे कोई अधिकार नहीं है।"
-डाक्टर आर. टी. ट्राल एम० टी० । __ मराठी और गुजरातीमें अनेक पुस्तकोंके लेखक, कई वैद्यक मासिक पत्रोंके सम्पादक और आयुर्वेद-विद्यापीठके संस्थापक स्वर्गीय आयुर्वेद महामहोपाध्याय श्री० शंकरदाजी शास्त्री महोदयने अपनी "आर्यभिषक् " नामक पुस्तकमें तमाखूके विषयमें बहुतसा लिखा है। वे लिखते हैं- "तमाखूकी टेवसे मनुष्यको बड़ी हानि होती है,परन्तु वह समझमें नहीं आती। तमाखू खानेसे मुंहमें बदबू उत्पन्न हो जाती है और दातोंको हानि पहुँचती है । बलगम उत्पन्न होता है,आँखोंको हानि होती है और पित्त भड़कता है। इसी प्रकार तमाखू पीनेसे छातीमें कफ उत्पन्न होता है और कलेजा जल जाता है। तमाखू खानेवाला कहा थूकेगा, इसका कोई नियम नहीं । इतना बुरा इसका असर होता है फिर भी तमाखूकी टेव दिन प्रति दिन बढ़ती जाती है। यह बुरी टेव जब लोग छोड़ देंगे तब ही देशका भला होगा।" __ अमरीकाके एक बुड्ढे ने जिसकी उम्र १३८ वर्षकी है, अपने दीर्घायु होनेका एक कारण यह भी बताया था कि " मैंने आज तक तमाखू न तो खाई और न पी।"
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