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स्वदेशी वस्तु तथा पहिनावा ।
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समाज और जाति से उसे अलग कर देना नियमके विरुद्ध नहीं है । और किसी ऐसे मनुष्यको -- जो विदेशी माल प्रयोग करनेवालोंके साथ - खानपान न रखे कोई सजा नहीं दी जा सकती, और ऐसे लाभकारक तरीकोंसे एक प्रकारका सामाजिक भय स्थापित किया जा सकता है, जो इस आन्दोलनके बड़े से बड़े शत्रुको भी डरा सकता है। + + + + भारतमें भी सरकार इन बातोंमें - जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता से सम्बन्ध रखती हैं किसी प्रकारका हस्तक्षेप नहीं कर सकती ।
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हम लोग विदेशी वस्तुओं के एक गहरे कुएँ में पड़े हैं, जिससे निकलना दुस्साध्य नहीं तो कष्टसाध्य अवश्य है । या यों कहें कि हम विदेशी वस्तुओंके दृढ़ भवन में बन्द हैं । हमारे चारों ओर विदेशी वस्तुएँ भरी हैं। हाथ में विदेशी लेखनी है तो, उसकी निब भी विदेशी है । स्याही भी विदेशी रंगकी है । रंग २ - ३ रुपये तोला तक मिलता है, पर हम उसीसे लिखते हैं। कागज, जिस पर हम लिखते हैं, विदेशी है। दावात, जिसमें स्याही है, वह भी भारत में नहीं बनी है । पिन, चाकू, आदि सभी वस्तुएँ हमारे सामने विदेशी हैं । उदाहरणार्थ एक लालटेन लीजिए वह डीट्ज कम्पनी अमरीकाकी बनी हुई है। उसका काच ( ग्लोब) अमरीकाका या जापानका है । उसमें तेल भी अमरीकाका भरा हुआ है, अधिक क्या कहें उसमें सूतकी बत्ती भी अमेरिकाकी ही बनी हुई है ! यदि तेल या लालटेन हमारे लिये एक दम न मिलें तो अमावस्या की रात्रिको लज्जित करनेवाला महा अंधकार भारतमें हो जाय । लालटेनोंका मूल्य दुगुना हो गया। वर्ष में एक दो काचके ग्लोब भी फूट जाते हैं,
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