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भारतमें दुर्मिक्ष। किया था, किन्तु सफलता न हुई । इस देशके लिए तो केवल गो-पुत्र बैल ही कृषिकार्य में उपयोगी जानवर हैं। ___ यहाँ पर कसाइयोंकी संख्या ३,४५, ९३३, है । अन्य देशोंमें भी कसाई और मांस-भोजी हैं, पर हमारे देशके कसाइयों की भाँति उत्तम और उपयोगी पशुओंका गला वे नहीं काटते । यहाँ भी उपयोगी पशु काटना निषेध है, किंतु धन-लोलुप पशु-परीक्षक डाक्टरको कुछ रुपये घूस दिये कि वह अच्छे पशुको भी मारनेकी आज्ञा दे देता है।
जिस भैाति अन्न विदेशोंको जाता है उसी प्रकार भारतके जीवित पशु भी बाहर जाते हैं । सन् १९०९ तक दस वर्षोंमें ३२०८८०९ जीवित पशु २०५०४७३०) रु० मूल्यके जल-मार्ग द्वारा बाहर भेजे गये और स्थल-मार्गसे तिब्बत आदि देशोंको १५७५९२७ पशु ९४५५५६५) रु० के बाहर भेजे गये । हमने तो ढोरों से इतना ही रुपया पैदा किया और भारतीय पशु-संख्याकी कमी की ! पर अमरीकाने सन् १८९९ में ४३ करोड़ रुपयोंके अण्डे और ४१ करोड़के अण्डज जीव बेचे । जापानमें सन् १९०४ में १६२५०००० मुर्गियाँ और ७५ करोड अण्डे हुए । इंग्लैण्डने एक वर्ष में १६ करोड़, जर्मनीने २ करोड़, फ्रांसने ८ करोड़ नार्वेने ३ करोड़, और कनाड़ाने ८ करोड़ रुपयोंकी आमदनी मछलियाँ बेच कर की। ___ भारत दरिद्र है, भूखा है, परतंत्र है, दुर्भिक्ष पर दुर्भिक्ष देख रहा है, या यों कहिए कि इसमें सदैव ही दुर्भिक्ष नाचा करता है, ऐसी अवस्थामें गाय-बैल रखनेका साहस कौन कर सकता है । चारेका अकाल भी तो साथ ही भयंकर रूपसे पशु-जगत्का संहार कर रहा
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