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उद्योग-धन्धे ।
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औद्योगिक विभाग पर रहेगा। इंजीनीयरिंग तथा धातु-विद्याके दो कॉलिज भी खोले जायँ । अन्य अध्यायोंमें इस बातका वर्णन है कि सरकार किन किन बातोंमें दखल रखे और यह कि सरकार अपनी औद्योगिक नीतिको छोड़ दे; क्योंकि अब उससे काम न चलेगा । सरकार तब तक विदेशी माल न ले, जब तक उसे यह न मालूम हो जाय कि भारत में वह माल नहीं मिल सकता । भूमि किस प्रकार प्राप्त हो सकेगी और रेलवेकी असुविधाओंको किस प्रकार दूर किया जायगा इत्यादि बातों पर विचार करते हुए कमीशन बतलाता है कि चूँ कि लोग उद्योग-धन्धों में रुपये नहीं लगाते अतः सरकार औद्योगिक बैंक भी खोले ।
अन्तमें कमीशन बतलाता है कि भारत में कच्चे मालकी बहुतायत है, पर उद्योग-धन्धोंकी उन्नति के लिये यहाँ यंत्र नहीं हैं । यहाँ के मजदूर तथा कारीगर यंत्र-विद्यासे अनभिज्ञ हैं, अतः यहाँवालोको विदेशका मुँह ताकना पड़ता है, इस सब बातोंका सुधार करनेके लिये बोर्डे | की स्थापना जरूरी है। इस कामके लिये २६ लाख रु० खर्च होंगे। फिर सात वर्षके भीतर इन स्कूलोंकी तरक्की करने में ८६ लाख रु० और लगाने पड़ेंगे ।
मालवीयजीका कहना है कि वैज्ञानिक तथा उद्योग-धन्धों की शिक्षा पर बड़े जोरशोर के साथ ध्यान दिया जाना चाहिए। इन विषयोंकी सरकारी संस्थाएँ खड़ी की जानी चाहिए । वैज्ञानिक खोज तथा व्यापार - ज्ञानकी शिक्षाकी ओर भी पूरा पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए । कम्पनी - शासन के समय से भारतवर्ष कृषि-प्रधान देश क्यों कर होता चला आया है, आपने इसका बड़ा मार्मिक चित्र खींचते हुए कहा है कि मेरी राय में भारतवर्षके कृषि प्रधान देश
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