________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कृषि ।
कृषिकार्यकी मुख्य वस्तु खादका बनाना या उसे उपयोगमें लाना उन्हें बिलकुल ही नहीं आता । अपने आलस्य और अज्ञानसे हम ऐसी ऐसी वस्तुओंको-जिनसे करोड़ों रुपयोंकी खाद बन सकती है, फेंक दिया करते हैं। गोबरकी खादमें पौधोंके आहारके प्रत्येक अंश (१) आक्सिजन, (२) कारबन, (३) हाइड्रोजन, (४) केलोशियम, (५) मग्नेशियम, (६) लोहा, (७) गन्धक, (८) नाइट्रोजन और (९) फासफरस मौजूद हैं, परन्तु अपनी भूलसे--जो बहुधा दरिद्रता-जन्य होती है हम कण्डे बना कर गोबरको जला कर राख कर डालते हैं। कितनी अनधिकार चेष्टा है कि पौधोंके आहारको हम जला कर बिगाड़ देते हैं । क्या किया जाय, इसे कृषकोंका दोष कहें या दरिद्रताका, जो उन्हें ऐसी मूर्खताएँ करने के लिये मजबूर करती है। यदि भूमिके भीतर पौधोंका आहार उपस्थित नहीं होता तो वे उसी भैाति मर जायँगे जैसे दुर्भिक्षमें मनुष्य । अत एव भारतीय कृषकोंको उचित है कि वे भाग्यके विचारोंको छोड़ कर खाद देने के विचारोंको उत्तेजन दें, जिससे उनकी दरिद्रताकी पुकार परमात्मा सुन सके । कण्डे बना कर फूक देनेसे कोई विशेष लाभ भी नहीं । मान लीजिए, एक जोड़ी बैलसे प्रतिवर्ष १२० मन गोबर मिल सकता है, जिसकी ८० मन उत्तम खाद तैय्यार की जा सकती है। यदि प्रति दस मन एक रुपया मूल्य मान लिया जाये तो वह आठ रुपये की हुई । अब कण्डोंका हिसाब लोजिएं। इसी गोबरले कण्डे तैय्यार कराये जावे तो ६० मन होंगे, जो गिनती में १९२०० होंगे और प्रत्येक कण्डा आच पावका होगा । यदि ४० कण्डोक्ता मूल एक पैता हो तो सबका मूल्य ७॥) रु. होगा। प्रफटमें आठ आने का ही अन्तर है, पर खादसे अपरिमित लाभ है और कण्डोका लाभ राख है।
For Private And Personal Use Only