________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दरिदता।
** Where half the Power that fills the
world with terror, Where half the wealth that spent on camp
and court Given to redeem the human mind from error There were no need of arsenals nor forts."
अर्थात्-" यदि उससे आधी शक्ति जिससे कि संसार कंपित किया जाता है, यदि उससे आधी संपत्ति जो अदालतों और दौरोंमें • व्यय होती है मनुष्य मात्रकी भूल सुधारनेके उपयोगमें लाई जाती तो शस्त्रशालाओं और किलोंकी कोई आवश्यकता न पड़ती!"
सुशासनमें वर्तमान कालके जैसी पुलिस-नियोजनाकी मैं आवश्यकता नहीं समझता । ज्यों ज्यों प्रजावर्गमें विद्याके प्रभावसे समझदारोंकी संख्या बढ़ेगी त्यों त्यों अत्याचार या अशान्तिकी मात्रा कम होती जायगी। पर विचारने की बात है कि हम दरिद्रताके चंगुलमें फंसे रह कर या भूखों मरते कानूनकी रक्षा कहाँ तक कर सकते है ? कहावत भी है “वुभुक्षितः किं न करोति पापं " अर्थात्-मरता क्या न करता । हममें केवल अन्नका ही तो दुर्भिक्ष नहीं है जिसे निवारण कर लें । शिक्षा-सम्बन्धी बातोंका भी तो यह। अकाल है। इसमें इतना नैतिक या धार्मिक बल नहीं कि लोग भूखों मर जायँ तो मर जायँ पर जीव-हत्या न करें । यदि दो चारमें उक्त बल हो तो भी तो उनकी आत्महत्या अनिवार्य है। फिर हम कैसे मान सकते हैं कि बिना दरिद्रता दूर किये, कहीं स्थायी शान्ति स्थापित हो सकती है। दरिद्रताके कारण हम अनेक प्रकारके अत्याचार कर सकते हैं और आज कर भी रहे हैं और न जान कब तक करते रहेंगे। हमारे देशके सब निंद्य कार्यों और अत्याचारोंका मूल कारण दरिद्रता है।
For Private And Personal Use Only