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दरिद्रता। दरिद्रता।
'रिद्रताको भी हम पहले दुर्भिक्षका एक कारण लिख आये हैं।
१देखिए दरिद्रता क्या कर सकती है। उदाहरणार्थ, एक दरिद्र काश्तकारकी दशा पर जरा ध्यान दीजिए-घरमें बैल नहीं, बोनेको अन्न नहीं । फसलके तैयार होने पर निंदाईके लिये मजदूरोंके देनेको पैसे नहीं । कहींसे भाड़े पर बैल लाकर जल्दी जल्दी जैसा जुत सका, खेत जोत डाला । कहींसे ऋण लेकर बीज बखेर दिया । वर्षा अधिक होनेके कारण वह बीज पानीमें बह गया या गल गया तो फिर कहींसे हाथ-पैर जोड़ कर जैसा बुरा भला बीज मिला लाकर खेतमें बो दिया। जब खेतमें १०।१२ इंच उँचे पौधे हुए तो महाजनके यहाँसे ४) रु० निंदाईके लिये ले आये । उस महाजनने एक रुपयेके १५ सेरके भावसे ६० सेर अन्नकी चिट्ठी लिखा ली, टिकट लगा कर उस पर उसके अँगूठेकी छाप लगवाली और दो मनुष्योंके गवाहीके स्थान पर हस्ताक्षर करा लिये । उस कृषककी फसल पक कर जब कुछ अन्न हाथ-पल्ले पड़ा तो सबसे पहले महाजनको, रुपयेका ग्यारह सेरका भाव होने पर भो पन्द्रह सेरके हिसाबसे ही देना पड़ा। इस प्रकार वह ४) रु० में ५/०) का अन्न दे आया। खेतकी जुताई, बीज तथा निंदाई अच्छी न होनेके कारण उपज भी कम हुई। कुछ महाजनने तौलमें भी अधिक लेकर अपनी नीचता प्रदर्शित की। अन्तमें उस बेचारके हाथमें केवल इतना अन्न रह गया कि एक आदमी भले प्रकार तीन महीने भी उससे पेट नहीं भर सकता ! लगान इत्यादिका तकाज़ा सिर पर सवार है । अब जरा सोचिए, वह दरिद्र कृषक कब तक मौतसे बच सकता है ? एक न
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