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लगान ।
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अधिक होनेसे हैं और इन्हीं कारणोंसे देश दिन दिन दरिद्री होता जा रहा है । " दूसरे स्थान में सर थियोडर होप साहबका कहना है कि:
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To our revenue system must in candour be as cribed a large part of the indebtedness of
the ryot." अर्थात्- -" लगानकी ज्यादतीके सबसे हो रैयत कर्ज के बोझ से दबी जा रही है । "
वास्तव में यह बात यथार्थ है । गरीवीकी आँच और लगानके कोड़े से कृषक बिलकुल तंग आ गये हैं। फिर भी सरकार के पक्षपाती इस बातको कैसे कुबूल करेंगे ? वे तो अपने खरीते में लिखेंगे
"Our assesment is not a source of poverty or indebtedness in India-it cannot be fairly regarded as a contributory cause of famine."
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अर्थात्- हमारा लगान भारतकी दरिद्रता या ऋणका कारण नहीं है। भारतीय दुर्भिक्षके कारणों में से यह एक कारण नहीं समझा
जा सकता । "
सुना है, इसके अलावा भी वे कहते हैं कि प्राचीन कालमें राजा लोग भूमि पर आजकलसे कुछ अधिक ही लगान लेते थे, और बात भी सत्य है। किंतु मालूम नहीं सरकार इसका क्या उत्तर देतो है कि वह और नीतियों में प्राचीन राजाओंका अनुकरण क्यों नहीं करती ? बस, लगान प्राप्त करनेको भारतीय प्राचीन राजाओंके अनुयायी बन गये । क्या यही न्याय कहाता है ? वे कहते हैं, टैक्स नाम मात्रका है। ठीक, किंतु जरा और देशोंके टैक्ससे मीलान तो कर देखिए ।
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