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लगान।
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लगान।
लुकेदार या जमींदारोंको कृषक कहना सर्वथव भूल है । ये " सरकार और कृषकके बीचके दलाल हैं। कृषकोंको जूते लगा कर-कष्ट देकर-लगान वसूल करना उनका काम है । खैरा राज्पके कृषकोंकी दुर्दशा हमारे भारतके सच्चे भक्त महात्मा गान्धीसे नहीं देखी गई, तब उन्होंने सत्याग्रह द्वारा कृषकोंको विजय प्राप्त कराई । विहार प्रान्तके चम्पारन जिलेकी भी यही दशा है । वहाँ भी निलहे गोरोंके अत्याचारसे उन्नीस लाख प्रजा, हर हालतमें तंग थी । यहाँ तक कि केवल इन्हीं अत्याचारोंके कारण उसे लोग भारतवर्षका फिजी कहने लगे थे । परमात्माकी कृपासे वहा भी अब किसी प्रकार महात्मा गान्धीकी सतत चेष्टाके कारण शान्ति स्थापित हो गई है । और भी अनेक प्रत्यक्ष उदाहरणोंसे आप विचार कर सकते हैं कि देशके कृषकोंकी कैसी दुर्गति है । खैरा राज्य ही क्या, यदि महात्मा गान्धी प्रत्येक राज्यके कृषकोंकी दशा पर ध्यान दें तो वह अति विचारणीय मिलेगी। इधर कर्मवीर महात्मा गांधी हमारे भारतीय कृषक समुदाय पर अत्याचार देख कर दुखी हो उनकी इस अवनति पर आँसू बहाते हैं, तो दूसरी ओर बन्धुघाती जमीदारों और ताल्लुकेदारोंने कृषकोंको उजाड़ देना ही निश्चय किया है । बेचारे असहाय, निर्बल कृषकोंकी पसीने की कमाई पर ये दलाल और भारत सरकार आनन्द कर रही है। ये गरीब लोग जो कुछ पैदा करते हैं, दूसरोंके सपुर्द कर अपनी मृत्युके स्वप्न देखा करते हैं। हम कहाँ तक इनकी दुर्दशा लिखें--इन बैंचारों के लिये केवल पाँच रुपयेका लिया हुआ ऋण भी एक वर्ष में चुका देना कठिन है । इतने में उसकी दुगुनी संख्या व्याज महाराज कर
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