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भारतमें दुर्भिक्ष । देते हैं । बेचारोंके घरमें खानेको अन्न नहीं, पहिननेको वस्त्र नहीं,
इनकी दुर्दशाका वर्णन करते हृदय विदीर्ण होता है। ____ हमारे देशमें कृषकोंसे मालगुजारी किस कड़ाईसे वसूल की "जाती है-जैसे भेड़ बकरीके शरीर परसे कसाई खाल उचेल लिया
करते हैं। यहाँके प्रायः सबके सब जमींदार 'शायलाक'के बाबा हैं। किसान बेचारे 'एण्टोनियों के पौत्रसे भी नम्र और ईमानदार हैं। जमीनकी मालगुजारीके आतिरिक्त और भी कितने ही प्रकारके लगान उनसे वसूल किये जाते हैं जिसका कुछ हिसाब नहीं। वे गिननीमें कमसे कम ५० भैौतिके होंगे। इनके हकदार राजके तहसीलदार, पटवारी और चपरासी होते हैं। जिस कृषकको सत्यनारायण भगवानकी पूजाके लिये आठ आने पैसे मुश्किलसे मिलते हैं; उससे ये विधातागण जुर्माने (!) के रूपमें पाँच पाँच रुपये तक वसूल कर लेते हैं । और जुर्म भी यही कि तुमने बाबू साहबकी तोंद बढ़ानेके लिये दो सेर दूध अथवा दही और एक चर्बीदार बकरा नहीं भेजा ! उन्होंने बाइसिकळ या हार्मोनियम बाजा खरीदा, उसमें तुमने कुछ भी चन्दा नहीं दिया इत्यादि ! इस विषयमें Bishop Heber ( विशाप हेबर ) साहब कहते हैं कि:--- ___ " भारतमें टैक्स ( लगान ) इतना लिया जाता है कि लोग अपनी उन्नति नहीं कर सकते। जब उपज अच्छी होती है तब भी यहाँके लोगोंके पास कर देनेके उपरान्त बहुत कम धन बचता है;
और उपज हुई तो--यद्यपि सरकार दुर्भिक्षके समय लोगोंकी सहायताके लिये सैकड़ों रुपये व्यय कर देती है फिर भी न जाने कितनी स्त्रिया, पुरुष और बच्चे गलियोंमें भूखे मरते ही रहते हैं। इस विषयमें मैंने जिन जिन लोगोंसे एकान्तमें बातें की हैं, वे सबके सब एक स्वरसे यही कहते हैं कि ये सब फसाद यहाँके लगानोंके
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