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भारतमें दुर्भिक्ष ।
पूर्तिक लिये भारत में प्रारम्भिक शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य होने की नितान्त आवश्यकता है ।
श्रीमान् ग्वालियर नरेशने कृषकों के सुधारकी ओर ध्यान दिया है और सैकड़ों हजारों रुपये प्रति वर्ष व्यय करके कृषकों को कार्य-पद बनाने का प्रयत्न किया है 16 1 जमीदार हितकारीणी सभा " स्थापित करके उसकी ओरसे बहुतसे उपदेशक नियत किये हैं; जिनका गाँव गाँव जाकर जमीदारोंको उपदेश देना कर्तव्य कार्य है । परन्तु - इस विभागका काम बिलकुल ढीला है । मेरे विचार से इसमें निम्न लिखित दोष हैं । ( १ ) उपदेशक संस्कृत फाकनेवाले हैं, जो अपने मनके भाव कृषकों पर प्रकट नहीं कर सकते । ( २ ) उन्हें व्याख्यान देना नहीं आता । ( ३ ) उनके उपदेशों में वे ही साधारण बाते हैं जिन्हें मामूली कृषक भी जानते हैं । ( ४ ) कई नशेबाज हैं । ( ५ ) बहुतसे हेटकार्टरों पर पड़े आनन्द किया करते हैं । ( ६ ) कई. गाँवों में चक्कर मार कर अपने घर आ बैठते हैं । इसी प्रकार जमी - दार, तहसीलदार आदिकी खुशामद बरामद करके अपनी डायरी भरते रहते हैं । इन उपदेशकोंके उपदेशोंसे कृषकोंको या कृषिकी क्या उन्नति हुई, इसका पूछनेवाला कोई नहीं । कितनी जगह इन्होंने खाद बनानेको नूतन युक्तियाँ बता कर खाद तैय्यार कराई ? कितनी जगह खेती के औजारोंमें सुधार कराया ? कितनी ऊसर भूमि उर्वरा और उर्वरा अधिक उपजाऊ तैय्यार कराई ? पैदावार में इनके उपदेशोंसे कितनी वृद्धि हुई ? इत्यादि । इन सबका उत्तर " हरिका नाम " है । भला ऐसे कहीं कृषिके कार्यकी उन्नति हो सकती है । कदापि नहीं । महाराजका यह कार्य स्तुत्य अवश्य है । परन्तु जमीदारों को शिक्षित बनानेका मार्ग ठीक नहीं है । इसके रूपमें परिवर्तन और सुधारको अध्यन्त आवश्यकता है ।
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