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कृषि । __मुख्य बात तो यह है कि हमारे भारतीय कृषक शिक्षित नहीं हैं
और न वे शिक्षित बनाए जा सकते हैं। क्योंकि हमारी गवर्नमेंट शिक्षा-प्रचारके लिये इतना कम व्यय स्वीकार करती है जो नागरिकोंके लिये ही पर्याप्त नहीं है, फिर भला जंगलों और छोटे छोटे गाँवों में रहनेवाले कृषकोंके बालक कैसे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं ? ये कुछ भी शिक्षा प्राप्त नहीं करते और अपने धन्धे में लग जाते हैं। यही कारण है कि देश में जितना अन्न पैदा किया जा सकता है, उतना नहीं होता । यह बात ठीक है कि देहातमें अधिक शिक्षा नहीं दी जा सकती, किंतु कमसे कम उन्हें इतनी शिक्षा भी तो मिलनी आवश्यक है कि लोग यह समझ सकें कि काले और सफेदमें क्या अंतर है ! बनियेसे हिसाब करते समय उसे समझा सकें और अपना हिसाबकिताब खुद समझ सकें.। मेरे कहनेका तात्पर्य यह नहीं है कि कृषकोंको बी० ए० या एम० ए० तक पढाया जावे। नहीं, उन्हें खेती करने और खाद बनानेके ढंग सिखाये जानेकी परम आवश्यकता है। कृषकोंके लिये कृषि-शिक्षा अनिवार्य हो तब ठीक होगा। कौनसा भूमि किस फसलके लायक है, एक फसल होने के बाद उस खेतमें
और कौनसी वस्तुका बोज डालना चाहिए, खादके लिये क्या करना होगा, इत्यादि आवश्यक बातोंको बिना जाने वे कैसे उत्तम अवस्थाको प्राप्त हो सकते हैं ? इसमें सन्देह नहीं कि ( India is a continent of villages ) पर साथ ही हमें लोकमान्य महात्मा तिलकके निम्न वाक्य न भूल जाना चाहिए
"हमारे गाँवोंकी क्या दशा है ?-गाँवोंमें पाठशालाओंका समुचित प्रबन्ध न होनेसे हमारे ग्राम निवासी अपन बच्चोंको नहीं पढ़ा सकते, इस लिये यह प्रबन्ध हमें स्वयं करना चाहिए।" ___ नये कृषकोंको नये नये औजारों द्वारा नवीन पद्धतिके अनुसार नई जिन्सों की खेती करना लिखलाना चाहिए । इस आवश्यकताकी
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