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भारतमें दुर्भिक्ष।
कृषि
" कृषिरन्यतमो धर्मो न लभेत्कृषितोन्यतःन सुखं कृषितोन्यत्र यदि धर्मेण कर्षति ।"
--पाराशर । मारे पूर्वज महर्षियोंने भारतके लिये कृषिकार्य ही सर्वोत्तम माना है।
उक्त पाराशरजीके वाक्यसे सिद्ध होता है कि खेतीमें जो लाभ है वह किसी अन्य धन्धेमें नहीं। तभी तो-"उत्तम खेती मध्यम बान निकृष्ट चाकरी भीख निदान " की कहावत हमारे देश में प्रचलित है । सारांश यह कि हमारे पूर्वजोंने संसार में सबसे उत्तम कर्म खेतीको माना है। परन्तु यदि प्रत्येक कार्य उत्तमतासे किया जाय, तभी वह उत्तम माना जाता है। केवल "उत्तम उत्तम" चिल्लानेसे ही वह उत्तम नहीं हो सकता। मेरे विचारसे कृषिमें उतनी अधिक बुद्धिकी आवश्यकता नहीं जितनी कि व्यापारमें दरकार है। भारत जैसे कृषि-प्रधान देशके लिये कृषिकार्य सर्वोत्तम है अवश्य, किंतु वर्तमान काल में वह भी पूर्ण अधोगतिको पहुँच चुका है। हमारा देश कृषिके पीछे बुरी तरहसे पड़ गया। प्रति शत ८० मनुष्य खेती करने लगे । मि० लिस्ट (List) इस विषयमें लिखते हैं किः
“A nation which passes merely agriculture and merely the most indispensable industries, is in want of the first and most necessary division of commercial operations among its inhabitants and of the most important half of its productive powers."
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