________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
"२८
भारत में दुर्भिक्ष |
लिये वर्तमान में यदि कोई भरोसा है भी तो वह केवल कृषि है । तब भी कोई हानि नहीं, कच्चे मालके लिये अब भी हमारे पास सामान हैं । हिसाब लगाने से मालूम हुआ है कि हममेंसे फीसदी ८० का नर्वाह कृषिके द्वारा होता है। कितने आश्चर्यकी बात है कि जिस देश में सौ पीछे ८० आदमी कृषिकार्यमें निरत हों वहाँ कृषक समेत सौका भी गुजर न हो सके !! और विलियम डिग्बी ( William Digby ) के कथनानुसार सन् १७९७ से १९०० ई० तक अर्थात् १०७ वर्षो में जितने युद्ध हुए हैं उनमें सब मिला कर ५० लाख मनुष्य भी नहीं मेरे, किन्तु दुर्भाग्य हैं कि उतने ही समय में अन्नके बिना तीन करोड़ पच्चीस लाख भारतीय आत्माओंने तड़प तड़प कर शरीर त्याग किया !! आष्ट्रेलिया महाद्वीपके एक सरकारी स्कूलमें इन्स्पेक्टरने लड़कोंसे प्रश्न किया कि भारतीयोंका मुख्य खाद्य पदार्थ क्या है ? एक लड़केने उठ कर उत्तर दिया- " उनका मुख्य खाद्य पदार्थ दुर्भिक्ष है !” उसका यह कथन अक्षरशः सत्य है । भारतको जितना पेट भरनेको अन्न नहीं मिलता उतना यह भूखा ही रहता है । अठारहवीं शताब्दीमें केवल ४ दुर्भिक्ष पड़े । किंतु तबसे धीरे धीरे इसका जोर बढ़ने लगा । उन्नीसवीं सदी में १८०० से १८२५ ई० तक दस लाख, १८२५ से १८५० ई०तक पाँच लाख और १८५० से १८७५ तक पंचास लाख मनुष्य अन्नके बिना काल - कवलित हुए । तदुपरान्त १८७५ से १९०० ई० तक अर्थात् इन २५ वर्षकी, दुर्भिक्ष लीलाकी विकरालता देख कर तो छाती फटने लगती है । केवल २५ बौ २८ दुर्भिक्ष पड़े और लगभग चार करोड़ भारतवासी उदरज्वालासे भस्मीभूत हुए | वह भारत, पहलेका जिक्र छोड़िए, जो आज भी संसार के आधेसे अधिक भागको अपने उपजाए अन्नसे भर देता है, उसीकी सन्तान इस प्रकार भूखों मरे, यह कितने आश्चर्य
For Private And Personal Use Only