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विषय-प्रवेश ।
नहीं हैं, बल्कि संसार भरके बाजारोंमें सुविधा और लाभके साथ बेचे जा सकते हैं। पर जब तक हम ऐसे उच्च भावके नवयुवक-रत्न उत्पन्न न करें जो वकालत और नौकरी-पेशेकी तरह इसमें भी तन्मय हों तब तक भारतका असीम धन गुप्त ही रहेगा।" __ एक जगह मि० बाल लिखते हैं कि-" यदि भारतवर्ष संसारके अन्य देशोंसे अलग कर दिया जाये या इसके उपजकी रक्षा का जाये तो यह निश्चित बात है कि एक सुशिक्षित सभ्य जातिकी सारी आवश्यकताओंको भारत अपनी ही उपजसे पूरा कर सकता है।"
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